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जनमानस

आचरण से बनें हिन्दू

अगर इस समय भारत में दो विचारधाराओं में परस्पर संघर्ष हो रहा है, हिंदुत्ववादी और पश्चिमपरस्त विचारधारा। दोनों विचारधाराओं में परस्पर संघर्ष जिन अनेक मूल्यों को लेकर चल रहा है उसके बीच में हिंदू खड़ा है। हिंदुत्ववादी विचारधारा हिंदू को भारत का केंद्र बिंदु मान कर चलती है, तो पश्चिम परस्त विचारधारा भारत के बारे में सोचते वक्त हिंदू को नकार कर चलती है।अगर सारा देश हिंदुत्व के आसपास ही अपना जीवन चला रहा है, अगर सारे देश के मन और भावनाओं में हिंदू संस्कार वैसे ही बसे हैं जैसे पानी में ठंडक और आग में तपिश बसे रहते हैं, तो फिर प्रश्न यह है कि इस देश का बुद्धिजीवी हिंदुत्व परांगमुख क्यों हुआ? इस प्रश्न का उत्तर इस निष्कर्ष में निहित है कि हिंदुत्व विचारधारा के पुरोधाओं पर जो दायित्व था उसे वे उतनी तत्परता से नहीं निभा पाये, जिस तत्परता की अपेक्षा इस देश को उनसे थी, अभी भी है, और आने वाले समय में भी बनी रहेगी। इसे समझने की जरूरत है। भारतीय धर्मावलंबी प्रत्येक भारतीय को, चाहे वह भारत में रह रहा हो या भारत से बाहर कहीं रहने को विवश हो, उसे ये सब बातें पहले से ही हृदयंगम हैं, हमें तो उसे केवल इतना भर बताना है कि यह जो तुम्हें हृदयंगम है वही हिंदुत्व है, उसी से तुम हिंदू हो। इतना भर करना है और वही हम नहीं कर पा रहे।

सुरेश हिन्दुस्थानी, ग्वालियर




Updated : 23 Aug 2014 12:00 AM GMT
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