जनमानस

समय बड़ा बली है


क्यों सुनेगा कोई? जब बड़े कहेंगे, बच्चे ही हमारी बात मानते जाएं, हम उनकी बिल्कुल न मानें।
बच्चे समय के साथ आगे बढ़ रहे हैं, उन्हें अनुचित आज्ञाओं से आप पीछे घसीटने का प्रयत्न करेंगे तो वे क्यों मानेंगे आप की बात? अनेक माता-पिता को देखा है, पहले अपनी जिद पर अड़े रहेंगे। अपनी चलाते रहेंगे। जब बच्चे तंग आकर विद्रोह पर उतर आएंगे तब समय बड़ा बली है, ऐसा कहकर उसके आगे सिर झुका लेंगे। हार मान लेंगे।
जी-हां, समय बड़ा बली है। इस तथ्य को यदि आप समय से पहले ही पहचान कर चलें तो घर में न दु:ख-क्लेश हो, न बच्चों का भविष्य बिगड़े और न बड़ों को ही आगे चलकर हार मानने अथवा निराशा का सामना करने की जरूरत पड़े। बुद्धिमानी से समय के साथ चलने वाला व्यक्ति जीवन की राह पर रपटता नहीं। स्वयं भी सुखी रहता है और घर में भी सुख-शांति का वातावरण बनाए रखता है।
पुरानी कहावत है- जो समय की कद्र करता है, समय उसकी कद्र करता है। परिवर्तन का यह नियम अटल है। फिर स्त्रियां अक्सर पुराने समय की दुहाई देकर अपना मार्ग कंटकाकीर्ण क्यों बनाती है? हर युग में, हर समय यही होता है। जो व्यक्ति सूझ-बूझ से समय की गति पहचानकर उसके साथ-साथ बदलते या चलते हैं, वे सफल होते हैं। जो नहीं चलते, नहीं बदलते, वे स्वयं भी कष्ट पाते हैं, दूसरों के लिए भी बोझ बनते हैं।
पुरुष हो या स्त्री, परिवार में किसी एक व्यक्ति के असहयोग से सारा वातावरण दूषित हो जाता है। इस असहयोग का मुख्य आरोप महिलाओं पर ही लगाया जाता है, जो बहुत हद तक सच भी है। पुरुष बाहर जाने-आने और अपनी आंखों से सब देखने के कारण नई बातों का इतना विरोध नहीं करते, जितना घर में रहने वाली स्त्रियां।
इसका एक कारण यह भी है कि परिवार के पुरुष सदस्य और बच्चे भी बाहर की नई जानकारी से घर की स्त्रियों को परिचित नहीं कराते। यदि वे समय-समय पर उन्हें नवीन बातों या परिवर्तनों की जानकारी देते रहें तो इतना विरोध न हो। अज्ञानता के साथ-साथ एक मनोवैज्ञानिक कारण भी इसमें जुड़ा है। यह मानव का स्वभाव है कि वह स्वयं जिन बातों से वंचित रहता है दूसरों को उसका उपयोग करते देख नहीं सकता। सह नहीं सकता। बेशक बच्चों के प्रति मां का प्यार इन बातों से ऊपर होता है, पर जाने-अनजाने किसी हद तक यह मानसिक प्रवृत्ति भी होती ही है। इसके पीछे मांएं आगे बढ़ते बच्चों की आकांक्षाओं-महत्वाकांक्षाओं को समझ नहीं पातीं मांएं उचित बातों का विरोध न करें, अपने दकियानूसी विचार उन पर न थोपें और बेटा-बेटी मां को समय के अनुकूल चलाने-ढालने में सहयोग करें, तो पीढ़ी-संघर्ष जैसी बात नहीं उठती और बात बन जाती है।

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