जनमानस
स्वदेशी में ही स्वाभिमान
भारत एक गरीब देश है, इस परिकल्पना पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है। देश के कई राजनेताओं, अधिकारियों और उद्योगपतियों का लाखों करोड़ों रुपया कालेधन के रूप में विदेशी बैंकों में गुप्त तरीके से जमा है। इसके बाद भी यदि भारत को गरीब देश की श्रेणी में माना जाए तो यह अतिरेक ही कहा जाएगा। भारत के इतिहास पर नजर डाली जाए तो यह सामने आता है कि हमारे देश को कई देशों ने लूटा। प्रत्यक्ष रूप से अंगे्रजों और मुगलों ने जहां धन को लूटा वहीं भारतीय संस्कृति पर भी कुठाराघात किया। इसके अलावा विदेशों द्वारा संचालित कई ऐसी कंपनियां हैं जो भारत को आज भी लूट रहीं हैं। आज विदेशी कंपनियों के उत्पादों से भारतीय बाजार भरे पड़े हैं और हमारे देश का उपभोक्ता वर्ग केवल इन्हीं उत्पादों के ऊपर निर्भर होता दिखाई दे रहा है। इतना ही नहीं जिन खाद्य पदार्थों से शरीर को बीमारियां होती हैं, विदेशी कंपनियों द्वारा उन खाद्य पदार्थों को ऐसे प्रस्तुत करके बेचा जा रहा है, जैसे सारी बीमारियों का हल इन्हीं में है। यह बाजारवाद एक प्रकार से देश को लूटने जैसा ही है, क्योंकि इससे विदेशी कंपनियां बहुत बड़ा मुनाफा कमाकर अपने मूल देश को देती हैं, जिससे भारत को बहुत हानि उठानी पड़ रही है। हम सभी भारत वासी अगर स्वदेशी वस्तुओं को खरीदने को प्राथमिकता दें तो शरीर को बीमारी प्रदान करने वाले खाद्य पदार्थों से छुटकारा मिलेगा, वहीं भारत को आर्थिक रूप से भी मजबूत बनाने में हमारा सहयोग मिलेगा। क्योंकि स्वदेशी में ही स्वाभिमान है।
डॉ. वन्दना सेन, ग्वालियर