अग्रलेख

भारत की राष्ट्रीयता का प्राण तत्व है हिन्दुत्व
- जयकृष्ण गौड़
इस सनातन सत्य को भी विवाद का विषय बनाया जा रहा है कि भारत हिन्दू राष्ट्र है। गोवा के एक मंत्री दीपक धवलीकर ने अपनी बात के संदर्भ में कहा कि नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भारत हिन्दू राष्ट्र बनेगा। उनके कहने का आशय यही हो सकता है कि सांस्कृतिक अवधारणा के अनुरूप भारत दुनिया का सबसे अधिक समृद्ध और शक्तिशाली राष्ट्र होगा। इसी बात को स्पष्ट करते हुए गोवा के उपमुख्यमंत्री फ्रांसिस डिसूजा ने कहा कि भारत पहले से ही हिन्दू राष्ट्र है और यह हमेशा हिन्दू राष्ट्र रहेगा। डिसूजा ईसाई है, उनके मुंह से हिन्दू राष्ट्र की बात सुनकर उनको आश्चर्य होना स्वाभाविक है जो हिन्दुत्व को किसी सम्प्रदाय या उपासना पद्धति मानते हैं, जो भारत को एक राज्य व्यवस्था के नाते जानते हैं, जिनको भारत अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त होने के बाद एक राष्ट्र दिखाई देता है, वे हिन्दू हिन्दुत्व की बात को सेक्युलर अवधारणा के विपरीत मानते हैं। पाश्चात्य राज्य व्यवस्था की अवधारणा में शासक या राज्य व्यवस्था बदलने से राष्ट्र की पहचान बदल जाती है, इसलिए अंग्रेजों ने यह भ्रम पैदा किया कि भारत को एक राष्ट्र का स्वरूप राजनैतिक स्वतंत्रता मिलने के बाद मिला है।
दुनिया के देश बनते मिटते रहे। मिस्र के पेरामिड देखकर हमें उसकी वैभवशाली पहचान का परिचय मिलता है। स्वामी विवेकानंद ने भी भारत की वैभवशाली सभ्यता की चर्चा करते हुए कहा था कि जब भारत की सभ्यता वैभव पर थी तब पाश्चात्य देशों के लोग वृक्ष की छाल पहनकर रहते थे। वे जब भारत के गौरव की बात करते थे तो वह हिन्दुत्व का गौरव था। देश की मूल पहचान के बारे में जिन्हें भ्रम है या हिन्दुत्व को जो एक सम्प्रदाय की दृष्टि से देखते हैं, उन्हें सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 11 दिसम्बर, 1995 को दिये गये निर्णय पर की गई टिप्पणी को समझना होगा, उसमें कहा गया है कि हिन्दू हिन्दुत्व और हिन्दू धर्म का सटीक निश्चित अर्थ नहीं बताया जा सकता। संस्कृति और विरासत के अंश को छोड़कर इसके अमूर्त अर्थ को धर्म की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता। यह भी बताया जाता है कि हिन्दुत्व शब्द इस उपमहाद्वीप के लोगों के जीवन जीने के तरीके से अधिक जुड़ा है। यह आंकलन कठिन है कि इन निर्णयों (पूर्ववर्ती सर्वोच्च न्यायालय) के बावजूद हिन्दू धर्म या हिन्दुत्व शब्दों को अमूर्त रूप में संकीर्ण हिन्दू कट्टरवाद के अर्थ में स्वीकारा जाय या उसके बराबर रखा जाय।
इस संदर्भ में भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी पुस्तक मेरा देश मेरा जीवन में लिखा है कि 'हिन्दुत्व का अर्थ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है। यह संकीर्ण रूप में केवल हिन्दुओं के लिए भारतीय राष्ट्रीयता की अवधारणा नहीं है। हममें से कुछ इस राष्ट्रीयता को हिन्दुत्व कहते हैं। पं. दीनदयाल उपाध्याय इसे भारतीयता कहते थे, कुछ लोग इसे इंडियन नेस कहते हैं। मैं इन तीनों शब्दों में कोई अंतर नहीं देखता। इस बारे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरूजी (मा.स. गोलवलकर) की मुस्लिम विद्वान और पत्रकार डॉ. सैफुद्दीन जिलानी की भेंट वार्ता का संदर्भ दिया जा सकता है। उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि मैं उन्हें हिन्दू मुसलमान मानता हूं ... हमारा धर्म और तत्व ज्ञान की शिक्षा के अनुसार हिन्दू और मुसलमान समान है।
वीर सावरकर ने हिन्दू हिन्दुत्व को एक किताब में परिभाषित किया है। उन्होंने हिन्दुत्व के सार तत्व को इस श्लोक में प्रस्तुत किया है :-
आ सिन्धु सिन्धु पर्यता, यस्य भारत भूमिका
पितृभू: पुण्य भूश्चैव सर्व हिन्दू रितिस्मृत:।
अर्थात हिमाचल से सिन्धु तक फैला हुआ भारत राष्ट्र है इसमें रहने वाले जो इसे पुण्य भू और पितृ भूमि मानते हंै वे हिन्दू हैं। राष्ट्रीयता की स्पष्ट विचार ध्वनि इस श्लोक में सुनाई देती है। संविधान के अनुसार किसी देश की राज्य व्यवस्था का परिचय हो सकता है लेकिन इसकी मूल पहचान को संविधान के अनुसार परिभाषित नहीं किया जा सकता। स्वतंत्रता के बाद पाश्चात्य लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुसार भारत के संविधान का निर्माण हुआ। बाद में इसमें सेक्युलर स्टेट अर्थात सर्वधर्म समभाव शब्द जोड़ा गया। जितनी भी हिन्दुत्व के विचारों के अनुरूप राज्य व्यवस्था रही, उनमें सभी प्रकार की उपासना पद्धतियों या सम्प्रदायों के प्रति समभाव रहा। सबको समान दृष्टि से देखने की दृष्टि केवल हिन्दुत्व में रही है। हिन्दू राजाओं ने तो ईसाइयों के चर्च और मस्जिदें बनवायीं। हिन्दुत्व को किसी सीमा में बांधना कठिन है। इसी विचार भूमि में बौद्ध, सिख, जैन आदि सम्प्रदाय या उपासना पद्धति विकसित हुई। इस सच्चाई से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि भारत के जितने ईसाई और मुस्लिम हैं उन्होंने चाहे उपासना पद्धति बदली हो, पैगम्बर और ईसा मसीह के उपदेशों को मानते हों, लेकिन उनकी संस्कृति और पूर्वज नहीं बदलते। इस सच्चाई को कैसे नकारा जा सकता है कि जब राम, कृष्ण, चाणक्य चंद्रगुप्त आदि महापुरूष अवतरित हुए तब न इस्लाम था और न ईसाई थे। भारत के अंदर रहने वाले चाहे हिन्दू, ईसाई या अन्य सम्प्रदाय पंथ हों, उनके ये महान पूर्वज रहे है। हर जाति अपने पूर्वजों पर गर्व करती है, पूर्वजों से सरोकार समाप्त करके किसी जाति का गौरव कायम नहीं रह सकता।
भारत के विभाजन के कई राजनैतिक कारण हैं। लेकिन जब मोहम्मद अली जिन्ना ने मुस्लिमों में यह भ्रम पैदा किया कि तुम्हारी संस्कृति, परम्परा और पूर्वज भिन्न हैं, यह भी बताया गया कि तुम्हारी राष्ट्रीयता मजहब पर आधारित है तुम्हारे पूर्वज रामकृष्ण, राणा प्रताप, शिवाजी नहीं बल्कि हमलावर बाबर औरंगजेब हैं, इसी झूठे भ्रम से भ्रमित होकर मुस्लिमों में द्विराष्ट्रवाद का जुनून पैदा हुआ और उसके कारण देश के विभाजन की खूनी रेखा खींची गई। करीब एक लाख लोगों का खून हुआ और करोड़ों के घर बर्बाद हो गये।
इन दिनों वैज्ञानिक भी यह मानते हैं कि पूर्वजों के जीन्स का असर व्यक्ति के आचरण में दिखाई देता है। यदि भारत के जितने हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन, सिख, बौद्ध आदि हैं, उनका यदि डीएनए टेस्ट किया जाय तो उनमें अपने महान पूर्वजों के जीन्स मिलेंगे। यदि रहन-सहन के अनुसार विचार किया जाय तो रीति रिवाज भी सभी के आपस में मिलते हैं। मुस्लिमों का सूफी पंथ भी हिन्दुत्व के विचार से ही प्रेरित है, दरगा, मोहर्रम, मूर्ति पूजा के ही स्वरूप है। मुस्लिमों में कई जातियां ऐसी हैं जिनकी परम्परा हिन्दुओं के समान है, भारत के ईसाइयों के नाम भी हिन्दू नाम जैसे है। छत्तीसगढ़ के कांगे्रस नेता अजित जोगी का नाम भी हिन्दू नाम है। जबकि वे ईसाई हैं। जम्मू-कश्मीर की सामाजिक स्थिति का अध्ययन करने पर पता चलेगा कि वहां के मुस्लिमों के नाम भट्ट, गुरू आदि हैं। इनके पूर्वज भी हिन्दू पंडित रहे हैं। यदि कश्मीर घाटी के मुस्लिमों का इस सच्चाई से साक्षात्कार होता कि हमारे और हिन्दुओं के पूर्वज और संस्कृति समान है, हम सभी इसी भारत भूमि के पुत्र हैं। हमारा खून समान है तो न हिन्दू पंडित अत्याचार से ग्रसित होकर कश्मीर घाटी से पलायन करते और न अलगाववादियों, आतंकियों और पाकिस्तानी एजेन्टों के पैर वहां जम पाते। ताजा घटनाक्रम यह है कि इजराइल द्वारा गाजा पट्टी पर जो हमले किये जा रहे है, उसके विरोध में कश्मीर घाटी में प्रदर्शन हो रहे हैं। इजराइल यहूदी देश है और फिलिस्तीनी मुस्लिम है, मुस्लिम देश इजराइल का अस्तित्व खत्म करना चाहते हैं और यहूदी अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहे हैं। फिलिस्तीनी और गाजा पट्टी में रहने वालों से भारतीय मुस्लिमों का कोई रिश्ता नहीं है। फिर वहां की लड़ाई के बारे में यहां गुस्सा क्यों? जिहादी आतंकवाद भी इस्लामी कट्टर विचारों की उपज है। दुनिया इस आतंकवाद के खतरे से जूझ रही है। इनका मकसद है कि दुनिया का इस्लामीकरण करना, इसी कट्टरवादी विचार से ही तालिबानी दैत्य पैदा हुआ है। मलाला को गोली मारने वाले इसी विचार से प्रेरित हैं। इस बारे में भारत के मुस्लिम कह सकते हैं कि भारत ऐसा देश है जहां सभी सम्प्रदाय और मजहब को समान दृष्टि से देखा जाता है।
भारत के लोकतंत्र की परिपक्वता के बारे में जब चर्चा होती है तो हमें अन्य देशों के लोकतंत्र से इसकी समीक्षा करनी होगी। जितने मुस्लिम देश हैं वहां लोकतंत्र स्थिर नहीं रह पाता। चाहे इराक, ईरान हो या सीरिया यूके्रन और पाकिस्तान हो, सभी में अराजकता, अस्थिरता है। भारत में लोकतंत्र का प्रवाह वर्तमान में नहीं वरन् सदियों से है। इस सच्चाई को भी स्वीकार करना होगा कि भारत में हिन्दू बहुसंख्य है इसलिए लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं सुदृढ़ हैं। यदि हिन्दुत्व का व्यापक दृष्टि से आंकलन किया जाय तो हिन्दुत्व में ही मानवता का सर्व स्वीकार तत्व है। इन सारे संदर्भों के साथ विचार कर निष्कर्ष निकाला जाय तो भारत सदियों से हिन्दुत्व से प्रेरित राष्ट्र रहा है। हिन्दू, राष्ट्र की पहचान राजनैतिक नहीं वरन् सांस्कृतिक है। इसी हिन्दुत्व की भावना से वसुधैव कुटुम्बकम् अर्थात विश्व को परिवार के स्वरूप में देखने वाला विचार प्रवाहित हुआ है।
(लेखक - वरिष्ठ पत्रकार और राष्ट्रवादी लेखक)
