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ज्योतिर्गमय

अग्निवेश ने फिर उगला जहर


भगवान से बात करने के अधिकार प्राप्त करने के लिए अंदर से बाहर तक पवित्र, निर्मल होना आवश्यक है। इसके बिना उनसे बात नहीं की जा सकती है।
हर युग में भगवान की बात बताने के लिए हजारों लोग आते हैं और वे शांति व मोक्ष का उपदेश देते हैं ,जबकि स्वयं अशांति भरे जीवन जी रहे होते हैं। गीता में दो मुख्य चरित्र हैं- एक अर्जुन का और दूसरा दुर्योधन का। अर्जुन वह जो संवेदना ,करूणा एवं ममतासे भरा है,जो सीधा व सरल है एवं दुर्योधन वह जो लोभ, लालच, अहंकार से भरा है एवं जो भगवान के सामने होने पर भी उन्हें पहचान नहीं पाता।
दुर्योधन के अंदर तमस् ही तमस् है जबकि अर्जुन के अंदर प्रकाश ही प्रकाश है इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने गीता अर्जुन को सुनाई।
गीता का नियमित पठन पाठन भगवान के प्रति आस्था जगाता है और उनके प्रति सच्ची आस्था रखने वाले लोग हर क्षेत्र में सफलता अर्जित करते हैं। अर्जुन, मीरा, तुलसीदास सहित अनेक लोग भगवान के प्रति सच्ची आस्था व प्रीति के कारण ही हर परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। उन्होंने कहा कि स्वार्थ पर संयम करने से ही आत्मसत्ता का ज्ञान होगा।
अहंकार ही नरक है। अहंकारी व्यक्ति क्रूर, संवेदनहीन, ईश्वर से विमुख होता है और संकीर्णता से ग्रस्त रहता है। उन्होंने कहा कि अहंकार ज्ञान अर्जन में सबसे बड़ा बाधक हैं अतः विद्यार्थियों को विशेष रूप से इससे बचना चाहिए।

Updated : 26 July 2014 12:00 AM GMT
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