अग्रलेख

डॉ. वैदिक दुश्मन देश के समर्थक नहीं हो सकते
- जयकृष्ण गौड़
चाहे पाकिस्तान की सेना और वहां की खुफिया एजेंसी हाफिज सईद को सहायता देती है, लेकिन दिखावे के लिए पाकिस्तान के हुक्मरान भी उसे आतंकवादी मानते हैं, उस पर एक करोड़ डालर का अमेरिका ने इनाम रखा है। पाकिस्तान में चाहे बेनजीर भुट्टो, मुशर्रफ की सरकार रही हो या अब नवाज शरीफ प्रधानमंत्री हों लेकिन अमेरिकी सहायता के बिना उसका काम नहीं चल सकता। पाकिस्तान जब से (१९४७) बना है तब से वहां सेना का वर्चस्व है, यह भी सच्चाई है कि जिसने सेना की बात नहीं मानी उसका तख्ता पलट गया। प्रधानमंत्री के नाते अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौर तक बस यात्रा कर दोनों देशों के बीच शांति बनाये रखने की पहल की। दुनिया ने अटलजी के शांति प्रयास की सराहना की लेकिन मुशर्रफ ने सेना प्रमुख होने से कारगिल की पहाडिय़ों में सैनिकों की घुसपैठ कराई। एक ओर शरीफ के द्वारा शांति बनाये रखने का भरोसा दिया जा रहा था और दूसरी ओर कारगिल पर कब्जे की साजिश हो रही थी। बाद में मुशर्रफ शरीफ का तख्ता पलटकर स्वयं राष्ट्रपति पद पर काबिज हो गया। अब भी नवाज शरीफ प्रधानमंत्री है सेना और आई.एस.आई. की करतूतों पर वे नियंत्रण नहीं कर सकते। यही कारण है कि भारत-पाकिस्तान के बीच ताशकंद से लेकर शिमला, लाहौर और आगरा में जो करार, समझौते हुए, उनके विपरीत पाकिस्तान का व्यवहार भारत के साथ दुश्मनी का रहा है। चाहे अमेरिका हाफिज सईद के संगठन अल उल दावा को आतंकवादी घोषित कर उसके बैंक खाते को जप्त कर दे, लेकिन हाफिज पाकिस्तान में खुलेआम घूमता है, उसकी सुरक्षा के लिए पाकिस्तान की सरकार पुख्ता व्यवस्था करती है, वह न केवल भारत के खिलाफ जहर उगलता है बल्कि भारत पर हमला करने के लिए आतंकवादियों की सेना तैयार कर रहा है, अपुष्ट समाचार के अनुसार सईद एक लाख आतंकियों की जेहादी फौज तैयार कर चुका है। हाफिज सईद इन खतरनाक आतंकवादियों का उपयोग भारत के खिलाफ करेगा। इसलिए हाफिज भारत के लिए अधिक घातक है। भारत ने चाहे हाफिज के खिलाफ प्रमाणों का पुलंदा अमेरिका को दे दिया हो, अमेरिका उसके खिलाफ क्या कार्रवाई करेगा ? इसका उत्तर तो भविष्य में ही मिल सकता है। लेकिन उसने अभी तक भारत के प्रमाणों के आधार पर कोई कार्रवाई नहीं की। ऐसे भारत विरोधी खतरनाक आतंकी सरगना से मिलकर वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने जो चर्चा की उससे भारत की संसद से लेकर सड़क तक बवाल मच गया है। ऐसी चर्चा की अनुमति लेना चाहिए, पाकिस्तान में स्थित भारत के दूतावास को जानकारी होना चाहिए। डॉ. वैदिक की हाफिज से भेंट की पाकिस्तान सरकार को भी जानकारी नहीं है। यह सवाल भी महत्व का है कि किसके माध्यम से भेंट हुई। हालांकि पत्रकार का यह धर्म है कि वह किसी का भी साक्षात्कार ले सकता है, इसके लिए किसी की अनुमति की आवश्यकता नहीं है। लेकिन यह बिन्दु चर्चा का हो सकता है कि जिन बातों का सरोकार राष्ट्र हित से है, इस दृष्टि से इस चर्चा का औचित्य क्या है ? संसद में भी इस बारे में चर्चा हुई, विदेश मंत्री सुषमाजी ने इसकी भत्र्सना की है।
कांग्रेस के शहजादे राहुल गांधी ने डॉ. वैदिक को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आदमी बताया। जबकि स्वयं डॉ. वैदिक ने संघ का सदस्य होने से इंकार किया है। संघ के राम माधव ने भी डॉ. वैदिक की हाफिज से भेंट की आलोचना की और उनके किसी प्रकार से संघ के संबंध होने से इंकार किया है। हालांकि वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य में करारी पराजय के बाद कांगे्रस अब विरोध के मुद्दे की तलाश कर रही है। कांग्रेसियों की कठिनाई यह है कि उसके नेतृत्व की तलाश केवल दस जनपथ में होती है। चाहे कितना भी योग्य नेतृत्व हो लेकिन इस परिवार का खोटा सिक्का भी चलाने की कोशिश होती है। राहुल गांधी का न कोई अध्ययन है और न राजनैतिक योग्यता है, फिर भी कांग्रेस ने उनके नेतृत्व में चुनाव लड़कर दुर्गति करा ली। वे नादान की तरह आरोप लगाते हंै, अब तो कांग्रेस के गुफराने आजम भी राहुल गांधी की अक्षमता पर उंगली उठाने लगे हैं। यदि उन्हें संघ पर आरोप लगाना हो तो पहले संघ की कार्यपद्धति का अध्ययन कर लें। राजग गठबंधन की प्रमुख सदस्य शिवसेना ने डॉ. वैदिक के खिलाफ आतंकी कसाब और अफजल गुरू जैसा बर्ताव करने की मांग की है। उन पर राजद्रोह का मामला चलाने की मांग की जा रही है।
हमारे यहां विडंबना यह है कि जानवर की पूंछ पकड़कर सवारी का आंकलन कर लेते हैं। पूरे साक्षात्कार की सीडी किसी ने नहीं सुनी, इसके पहले ही लगाये गये आरोपों को आधार मानकर हो-हल्ला हो रहा है। किसी भी व्यक्ति पर यदि देशद्रोह का आरोप लगता है तो उसके दिल पर चोट पहुंंचती है, डॉ. वैदिक ने बार-बार कहा है कि उनकी हाफिज से हुई भेंट को पूरा सुने बिना ही राजद्रोह के आरोप में प्रकरण दर्ज किये जा रहे हैं। जब हम पत्रकारिता के मूल्यों की चर्चा करते हैं तो यह कहते हैं कि सामाजिक, राष्ट्रीय सरोकारों को प्राथमिकता देना चाहिए। हर पत्रकार चाहता है कि उसके समाचार चर्चा में आयें। विवाद से भी पत्रकारिता की ऊँचाई का आंकलन होता है। बोफोर्स का मामला अखबार के माध्यम से संसद में उठा था और उसके कारण राजीव गांधी की सरकार को जाना पड़ा। ऐसी पत्रकारिता का उल्लेख पत्रकारों की नई पौध को प्रेरणा और दिशा दर्शन देने का काम करती है। सामाजिक या राष्ट्रीय सरोकारों से कटी पत्रकारिता चाहे सनसनी पैदा करने में सफल हो जाए, चाहे ऐसा पत्रकार सीना फुलाकर अपने समाचार को सनसनी खेज बनाने की विजयी ध्वजा फहराता रहे। इससे यदि राष्ट्रहित प्रभावित होता है तो ऐसी पत्रकारिता से हानि के अलावा कुछ नहीं होती।
अब सवाल यह है कि डॉ. वैदिक की आतंकी सरगना हाफिज सईद से इस भेंट या चर्चा से राष्ट्रीय हित कितना प्रभावित हुआ। डॉ. वैदिक इंदौर के हैं, उनके पिता स्व. जगदीश प्रसाद वैदिक कट्टर आर्य समाजी थे। आर्य समाजी संस्कारों में ही डॉ. वैदिक पले बड़े हुए। उन्होंने पत्रकारिता की शुरूआत इंदौर से की। हिन्दी के प्रबल समर्थक होने से उन्होंने अंगे्रजी हटाओ अभियान चलाया। दिल्ली में स्थापित होकर उन्होंने न्यूज एजेंसी भाषा में भी कार्य किया। अन्य समाचार पत्रों के संपादन का दायित्व संभाला। उन्होंने हिंदी में ही शोध प्रबंध लिखकर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। उनका सादा जीवन और उच्च विचार दूसरे पत्रकारों के लिए प्रेरक रहे हैं। अफगानिस्तान की राजनीति का उन्हें गहराई से अध्ययन है, उनके वहां के नेताओं से भी मधुर संबंध हैं। उनके कथनों में सभी राजनेताओं से संबंध होने का दावा किया जाता है। इंदिराजी से लेकर राजीव और राहुल तक उनकी पहुंच रही है। नरसिंहराव के समय उन्होंने रामजन्म भूमि अभियान और प्रमुख गतिविधियों में प्रमुख भूमिका निभाई। वर्तमान में भी डॉ. वैदिक योग गुरू स्वामी रामदेव के मंच पर भी कई बार दिखाई दिये, यह भी कह सकते हंै कि उन्होंने योग गुरू के साथ मिलकर कांग्रेस सरकार के विरोध में अभियान चलाये। हालांकि लोकतंत्र में हर व्यक्ति राजनैतिक सरोकारों से जुड़ा रहता है। वैचारिक प्रतिबद्धता भी रहती है। इन सब बातों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि डॉ. वैदिक का झुकाव हमेशा राष्ट्रवादी विचारों की ओर रहा है। मैंने जीवन का अधिकांश समय दैनिक स्वदेश में रिपोर्टर से लेकर प्रधान संपादक का दायित्व संभाला। एक बार स्वदेश की पुरानी फाइलें उलट पुलट करने का अवसर मिला। डॉ. वैदिक के कई लेख स्वदेश में प्रकाशित हुए हैं। हमारे प्रधान संपादक माणिकचंद वाजपेयी डॉ. वैदिक के लेखों की अक्सर सराहना करते थे। अब भी उनके लेख देश के प्रमुख अखबारों में प्रकाशित हो रहे हैं। इंदौर से ही जिन्होंने पत्रकारिता प्रारंभ की, ऐसे प्रभाष जोशी राजेन्द्र माथुर के साथ डॉ. वैदिक के लेखन का आंकलन किया जाता है। प्रभाष जी और रज्जू भैया तो दुनिया में नहीं हंै लेकिन इसमें संदेह नहीं कि डॉ. वैदिक पर इंदौर गर्व करता है। इंदौर का होने के कारण मैं यह भी कह सकता हूं कि हम पत्रकारों के लिए डॉ. वैदिक प्रकाश पुंज रहे हैं। ऐसा व्यक्ति राष्ट्रीय सरोकारों से हटकर अपनी पत्रकारिता नहीं कर सकता।
डॉ. वैदिक यह जानते हैं कि हाफिज सईद आतंकवादी सरगना है और भारत के खिलाफ जेहादी तैयार कर रहा है। वे शायद यह भी जानते होंंगे कि उनकी हाफिज की भेंट जब प्रसारित होगी तो बवाल पैदा होगा। लम्बे समय से पत्रकारिता करने से यह भी जानकारी होगी कि ऐसे आतंकवादी से चर्चा करने के लिए सरकार की अनुमति आवश्यक है या नहीं ? यह भी संभव नहीं कि जिस हाफिज सईद पर अमेरिका ने एक करोड़ डालर का इनाम रखा हो, उससे मिलने की जानकारी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी को नहीं होगी ? इस पूरे मामले में झूठ का घालमेल भी दिखाई देता है। यह बताया जाता है कि जिन भारतीयों को पाकिस्तान का वीजा मिलता है, उन पर पाकिस्तान में विशेष निगरानी रखी जाती है, ऐसी निगरानी से डॉ. वैदिक बचते हुए आतंकी सरगना हाफिज तक कैसे पहुंच गये। इस बात में भी संदेह पैदा होता है कि साक्षात्कार के जो अंश प्रसारित किये गये, उनसे कश्मीर के बारे में पाकिस्तान की नीति को बल मिलता है, डॉ. वैदिक बार-बार कह रहे हैं कि उनके साक्षात्कार को ध्यान से सुना और समझा जाय। विपक्ष साक्षात्कार की एक दो बातों का झुनझुना बजाकर यह बताना चाहता है कि वे ही सच्चे देश हित के पैरोकार हैं। डॉ. वैदिक के बारे में चाहे कुछ भी कहा जाय लेकिन उनके पारिवारिक संस्कार और मेरा उनके साथ जो सम्पर्क रहा उस आधार पर मैं यह दावे से कह सकता हूं कि डॉ. वैदिक के बारे में राय कुछ भी हो सकती है किन्तु वे राष्ट्रीय सरोकारों से हटकर एक भी बात ऐसी नहीं कर सकते, जिससे देश की एकता अखंडता प्रभावित हो। उनकी पहचान राष्ट्रवादी पत्रकारिता से बनी है। ऐसा पत्रकार दुश्मन देश की नीतियों का पैरोकार नहीं हो सकता।
(लेखक - राष्ट्रवादी लेखक और वरिष्ठ पत्रकार है)
