जनमानस
साईं और शंकराचार्य का सत्य
कृपया हिन्दू धर्म को संकीर्ण न बनाइये।
मानवता के पर्याय हिन्दुत्व को न लजाइये।
सेवा की सच्ची संत भावना में 'संघ' का गौरव मत गिराइये। सत्य पर चलने वाले ही सत्य का साक्षात्कार कर सकते हैं। जो शंकराचार्य बनकर शंकराचार्य के सत्य को प्राप्त नहीं हुए वे साईं या कबीर के सत्य को कोई परिभाषा कैसे दे सकते हैं। जिनकी पहचान और परिचय परमात्मा की इंसानी सेवा में विलीन हो जाती है ऐसे भक्त और दास के लिए तरसती दुनिया लोकप्रियता, सम्मान में धर्म के ढोंगी पुजारियों से कुछ भी सीखने की आशा नहीं रख सकती। हर-हर मोदी की खिलाफत में और दिग्गी कलंकित चरित्र के शिष्यत्व के धनी स्वरूपानंद निज स्वरूप के आनंद से भी खाली नजर आते हंै तभी तो शंकराचार्य के सत्य को प्राप्त किए बिना वे साईं सत्य का असत्य उवाच करने को प्राप्त हुए। हिन्दू धर्म का खतरा तो वे स्वयं है साईं बाबा की आस्था को खतरा निरुपित करने का कोई औचित्य नहीं हो सकता। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने शंकराचार्य की पात्रता को जरा सा भी छुआ होता तो उनके कहे का असर जरुर होता। वो आद्य शंकराचार्य को जीवन में नहीं उतार सके तब साईं के प्रति आस्था पर अंगुली कैसे उठा सकते हैं। हरिओम जोशी, भिण्ड