जनमानस
सोशल मीडिया का प्रयोग तर्कपूर्ण हो
समाज के चार प्रमुख स्तंभ कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायका, पत्रकारिता थे। आज सोशल मीडिया समाज का पांचवां मजबूत स्तंभ बन कर स्थापित हो गया है। संचार क्रांति का यह पांचवां स्तंभ निश्चित ही देश की दिशा और दशा पर आम आदमी की राय शुमारी का स्तंभ है।
लेकिन मैं देखता हूं कि सोशल मीडिया पर जिस तरह की शब्दावली (असंसदीय) भाषा में कमेन्ट (कटाक्ष) हमारे दोस्त कर रहे हैं, वह उचित नहीं कहा जा सकता। कुछ मित्र सोशल मीडिया को अपनी कुंठित भड़ास निकालने का माध्यम मानकर कुछ भी अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं। उन्हें शायद पता हो या न हो कि देश में एक साइवर कानून भी है। भले ही अन्य कानूनों की तरह वह उतना प्रभावी न हो लेकिन अगर प्रभावी ढंग से इस्तेमाल कर लिया जाए तो सबक सिखाने में कसर नहीं छोड़ेगा, भारतीय लोकतंत्र में आजादी का मतलब मुखर आलोचना तो है। लेकिन असंसदीय शब्दावली के प्रयोग की खुली छूट नहीं देता है। सोशल मीडिया को उपयोग करने से पहले टर्म एण्ड कंड़ीशन पर जरूर गौर करना चाहिए, जिसकी आपने फेसबुक ट्विटर आकाउण्ट बनाते समय हामी भर रखी है। आप आपत्तिजनक कमैण्ट के लिए दोषी हो सकते हैं। कुछ मित्र मोदी के नव निर्वाचित मंत्रिमंडल पर अपनी रायशुमारी दे रहे है। शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी ग्रेजुएट नहीं है। इस से राजनीति पर खास फर्क नहीं पड़ता पर लोग कुछ तो कहेंगे, महाराज शिवाजी पढ़े लिखे नहीं थे सर्वविदित है। लेकिन शिवाजी जैसा सुशासन किसी अन्य का इतिहास में दर्ज नहीं है। डिग्री लेने पर से कोई प्रज्ञावान नहीं होता आदमी का काम कार्यशैली नेतृत्व महत्वपूर्ण होना चाहिए। सो सोशल मीडिया के दोस्तों कमेण्ट करें, होशपूर्वक, तर्कपूर्ण एवं संसदीय शब्दावली हो तो अच्छा होगा।
कुंवर वीरेन्द्र सिंह विद्रोही, ग्वालियर