Home > Archived > जनमानस

जनमानस

फर्ज अदायगी से पर्यावरण नहीं सुधरेगा


संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा पर्यावरण सुरक्षा कार्यक्रम के तहत शुरु किए गए पर्यावरण दिवस को हम 1973 से मना रहे हैं। 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में बड़े धूमधाम से हम और आप ने मनाया, शहर की कई संस्थाओं ने सैमीनार रैली, ड्रॉइग प्रतियोगिता, भाषण प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया, क्या इस तरह की फर्जअदायगी वाले वृक्षारोपण व अन्य कार्यक्रमों से पर्यावरण जागरुकता आएगी मुझे नहीं लगता उक्त फर्ज अदायगी पूर्ण कार्यक्रमों से पर्यावरण का कुछ हित हो सकता है।
कोई भी वृक्ष जिस तरह अपनी जड़ों के बिना जीवित नहीं रह सकता, ठीक उसी प्रकार समाज अपनी अतीत रूपी जड़ों से अलग होकर लम्बे समय तक जीवित नहीं रह सकता है। प्राचीन भारतीय संस्कृति मुख्य संस्कृति थी, पूरा जीवन प्रकृति के सान्निध्य में चलता था। लेकिन आज हम पाश्चात्य संस्कृति के अनुसरणकर्ता बन गए है। भौतिक संसाधनों में जीवन का आत्मिक आनन्द खोज रहे है। जो सम्भव नहीं है। मैं अपने बचपन 1975 के समय को याद करता हूं। तो मन रोमांच से भर जाता है। भिण्ड के गौरी तलाब में पीपल के पेड़ पर चढ़ कर छलांग लगाना, कमल पुष्प तोडऩा ननिहाल में यमुना के तट पर रेत के घरोंदे बनाना, घण्टो जल क्रीड़ा करना, बाड़ी में से तरबूज, ककड़ी, खीरे तोड़कर खाना, पशुओं के साथ दिन भर जंगल में भटकते हुए खेलना सचमुच आनन्द पूर्ण था। प्रकृति के बिना जीवन की कल्पना करना भी व्यर्थ है। आज के समय की विड़म्बना है। तलाब-कुंओं ने दम तोड़ दिया है। नदिया बीमार हो चुकी है। वृक्ष जीवन से विदा हो रहे हैं। क्रांक्रीट के जंगलों में टीवी. डिब्बे के सामने बैठे बालक कैसे जान सकते है। ग्राम सौंंदर्य और पर्यावरण का महत्व हमें चाहिए स्वदेशी संस्कृति को अपनाएं घर में पौधों के लिए जगह अवश्य रखे, वृक्षों को परम मित्र मान कर सहेजें, ताकि पर्यावरण और हम सुरक्षित रहें।

कुंवर वी.एस. विद्रोही, ग्वालियर

Updated : 10 Jun 2014 12:00 AM GMT
Next Story
Top