अग्रलेख

ये हैं मजहबी सांप्रदायिकता के जहरीले नाग

  • जयकृष्ण गौड़

कथित सेक्युलर जमात ने अपने वोटों के लिए मजहबी सांप्रदायिकता को गले लगाकर न केवल उनको जहर उगलने का पूरा अवसर देते रहे, बल्कि उनके देश को बर्बाद करने की हरकतों को बर्दाश्त करते रहे। मजहबी सांप्रदायिकता का जहर कितना फैला और अब भी जो अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं, इसके दो उदाहरण दिए जा सकते हैं। एक है ऑल इंडिया मजलिस ए. इत्तेहादुल मुसलमान के विद्यालय अकबरूद्दीन ओबैसी, जिन्होंने हैदराबाद की सभा में कहा कि हम चाहे पच्चीस करोड़ हों, लेकिन पुलिस को हटा दें तो हम सौ करोड़ को सबक सिखा सकते हैं। जो हमें बाहर जाने की बात करते हैं, यदि जाएंगे तो साथ में कुतुबमीनार और लालकिला भी ले जाएंगे। इनके पास टूटा-फूटा राम मंदिर बचेगा। ये महोदय यहीं नहीं रुके, लेकिन उन्होंने माता कौशल्या और हिन्दू देवी-देवताओं को भी गंदे शब्दों में लांछित किया। इस जहरीले भाषण के कारण ही अकबरूद्दीन को जेल की हवा खानी पड़ी। लोकसभा चुनाव के बाद सारा राजनैतिक परिदृश्य बदल गया। जो इन जहरीले तत्वों का बचाव करके वे अपने घरों में बैठे अपने भाग्य को कोस रहे हैं। कथित सेक्युलर विचार भूमि बंजर हो गई है। पाश्चाताप करने की बजाए हार का ठीकरा एक-दूसरे पर फोड़ रहे हैं। राजस्थान के भंवरलाल शर्मा जैसे वरिष्ठ नेता ने राहुल गांधी को जोकरों का नेता कहा है। पहली बार यह हुआ कि कांग्रेस में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नेतृत्व पर उंगली उठने लगी है। राहुल गांधी के नेतृत्व में इतने बुरे दिन देखना पड़े, इसकी सच्चाई सब कांग्रेसी जानते हैं। अंतर केवल इतना है कि कोई सीधा आरोप लगा रहा है और कोई चुप है।
अब भाजपा की मोदी सरकार को स्पष्ट बहुमत मिल गया है। प्रधानमंत्री श्री मोदी और उनके मंत्रियों ने शपथ लेकर काम प्रारंभ कर दिया। अब मुलायमसिंह, लालू यादव, ममता और मायावती जो पानी पी-पीकर नरेन्द्र मोदी को कोसते थे, उनकी बोलती बंद है। शक्ति को सब नमन करते हैं। जो अमेरिका श्री मोदी को वीजा देने के लिए तैयार नहीं था, वह ओबामा और उनके राजदूत अमेरिका के साथ मधुर संबंध बनाने का संदेश दे रहे हैं। चीन के प्रधानमंत्री भारत में आने की घोषणा कर चुके हैं। सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने शपथविधि समारोह में आकर श्री मोदी को बधाई दी। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ कट्टरपंथियों और सेना के दबाव के बावजूद भारत आए और उन्होंने श्री मोदी को बधाई देने के साथ शांति बनाए रखने का आश्वासन दिया। चाहे हम लोकतंत्र को इब्राहिम लिंकन के इन शब्दों के साथ परिभाषित करें कि 'लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए और जनता के द्वारा संचालित होता है, लोकतंत्र के व्यवहारिक स्वरूप के बारे में अलग-अलग ढंग से समीक्षा की जाती है।Ó इसमें जनशक्ति का सबसे अधिक महत्व है, जिसके साथ जनता का बहुमत है उस दल और नेता को ही लोग शक्तिशाली मानते हैं। जनशक्ति भाजपा और नरेन्द्र मोदी के साथ है। हाल ही में 'लोकसभ चुनाव 2014Ó में भाजपा को लक्ष्य से अधिक 283 सीटों पर जीत दर्ज हुई। हालांकि सहयोगी दलों के साथ एनडीए की 333 सीटें हो गई है। भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिलने से यह सरकार बिना दबाव के काम करेगी, मोदी सरकार ने तेजगति से काम करना प्रारंभ भी कर दिया है। 1984 में इंदिराजी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति लहर से कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिला, लेकिन उस समय राजीव गांधी सरकार ने सबको साथ लेकर सरकार नहीं चलाई। अब नरेन्द्र मोदी की सरकार को स्पष्ट बहुमत मिलने के बाद भी सभी सहयोगी दलों को न केवल साथ लेकर काम शुरू किया, बल्कि उनको सरकार में भागीदारी दी। लोकतांत्रिक परंपरा का पालन करते हुए उपसभापति के लिए विपक्ष में से उपसभापति चुनने का प्रस्ताव मोदी सरकार ने प्रस्तुत किया है। सबका साथ, सबका विकास के मंत्र के साथ मोदी सरकार ने काम प्रारंभ कर दिया। मुस्लिमों के शिक्षित युवक भी श्री मोदी से प्रभावित हैं। इस चुनाव की समीक्षा में यह निष्कर्ष भी उभरा है कि दस से बीस प्रतिशत मुस्लिमों ने भाजपा का समर्थन किया है। राष्ट्र की मूलधारा में समरस होने का अवसर मुस्लिमों को मिला है, जो मुस्लिमों के उज्जवल भविष्य के लिए शुभ है। लेकिन मुस्लिम कट्टरपंथी, मजहबी जुनून को पैदा कर मुस्लिमों को भ्रमित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हैदराबाद से सांसद चुने गए अकबरूद्दीन ओबैसी ने हैदराबाद के मुस्लिमों की सभा में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ जो जहर उगला, उसकी गंदी बातें लिखना, कलम की मर्यादा का उल्लंघन होगा, लेकिन उसने जो कहा उनकी बानगी दी जा सकती है। उसने कहा कि इन गुंडों को समाप्त करना है। उसने उत्तरप्रदेश के मुस्लिमों को लानत देते हुए कहा कि धिक्कार है उनको जो उ.प्र. में एक भी मुस्लिम को जिता नहीं सके...हम इन गुंडों से डरते नहीं...हम इनका मुकाबला करेंगे...। गुंडा शब्द किसके लिए कहा गया, इसको सब जानते हैं। यदि ऐसे ओबैसी के खिलाफ कार्रवाई होती है, होना चाहिए तो सेकुलर मेंढक टर्र टर्र करने लगेंगे। हिन्दुओं के खिलाफ जहर उगलने वाली ताकतों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होने से ही इनके हौसले बढ़ जाते हैं। ओबैसी यही नहीं रुके, उन्होंने गत चुनाव के संदर्भ में कहा कि जब बकरियां आगे दौडऩे लगती है तो कुत्ते उन बकरियों को मालिक के पास घेरकर ले जाता है। अब तुम अल्लाह के पास आ गए हो, अल्लाह के नाम पर जेहाद करो। देवी-देवताओं की खिल्ली उड़ाते हुए उसने गाय को माता कहने का विरोध करते हुए यह भी कहा कि हम तो गाय को खाते हैं।
इस प्रकार के जहरीले प्रचार से चाहे हिन्दू भावना आहत होती हो, लेकिन वे अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते। क्योंकि हिन्दू का मूल स्वभाव अति सहिष्णु है। इस करण उसे संकटों का भी सामना करन पड़ा। हिन्दू की सुप्त प्रतिक्रिया होती है उसकी प्रतिक्रिया के प्रलयंकारी परिणााम सामने आते हैं। सेक्युलरी पाखंड से हिन्दू ऊब चुका था। हालत यह हो गई थी कि उसकी भावना को लहूलुहान करने पर भी उसकी पुकार को सेक्युलरी पाखंड के नाम से दबा दिया जाता था। इसी पाखंड के कारण देश विभाजन की खूनी रेखा खींची गई। आठ लाख हिन्दुओं का कत्लेआम होने के बाद भी वह चुप रहा। इसके बाद भी सेक्युलरी पाखंड को पोषित करने का काम कांग्रेस, कम्युनिस्टों ने किया। नेहरूजी से लेकर इंदिराजी, राजीवजी तक की यही कहानी है। मुस्लिम वोटों के लिए कश्मीर घाटी के उस अब्दुल्ला परिवार को सिर पर बैठाया, जिसे वहां की जनता ने ही चुनाव में नकार दिया है। ओबैसी और उत्तरप्रदेश के आजम खान जैसे नेता मजहबी सांप्रदायिकता के जहर को फैलाकर जो देश की एकता अखंडता को खंडित कर भारत को बर्बाद करने की साजिश को क्या नरेन्द्र मोदी की सरकार सफल होने देगी? कुछ भी हो इन जहरीले नागों को कुचलना होगा।
(लेखक-वरिष्ठ पत्रकार और राष्ट्रवादी लेखक)

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