जनमानस
हवाहवाई कानूनों से हित नहीं होगा
कल एक सुर्खी पढ़ी, कानून बनाने से पहले संसद उसका असर भी सोचे, उक्त टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस आर.एम. लोढ़ा ने की है। सच ही कहा है। संसद द्वारा कोई कानून बनाने से पहले यह विचार करना आवश्यक है कि उक्त कानून के न्यायपालिका पर पडऩे वाले असर क्या होंगे, वह समस्या के निदान में कहां तक कारगर साबित होगा, अथवा खुद कानून एक समस्या बन जाएगा, लेकिन मैं देखता हूं कि हमारे सांसदगण (नेता) कोई घटना घटने पर, जनता द्वारा ज्यादा हाय तौवा मचाने पर आनन-फानन में कोई नया कानून पास कर जनता को कानूनी झुनझुना पकड़ा कर अपने कर्तव्यों की इति श्री मान लेते हैं। उदाहरण के लिए देखें एण्टीरेप बिल, सूचना का अधिकार 2005 अन्य तमाम कानून बनते हैं। उक्त कानूनी कार्यवाही सालों चलती रहती है। नतीजा ढाक के तीन पात रहते है।...'एण्टीरेप बिल की एक धारा के अनुसार ''चौदह सैकेण्ड से ज्यादा किसी महिला को देखना अपराध माना जाएगा और मजे की बात यह है कि उक्त कानून महिला सम्मान की बात करने वाली कांग्रेस सरकार ने पास किया है। जिस पार्टी के महासचिव दिग्गी राजा 67 वर्ष की उम्र में टी.वी. एंकर अमृताराय के प्रेम में उलझ गए हैं। ऐसे ही सूचना अधिकार नियम के तहत कितनो को सूचनाएं प्राप्त होती हंै। मैं समझता हूं सूचनाएं सिर्फ उन्हें प्राप्त होती हैं जो रसूखदार है। जब तक ईमानदार पुलिस विवेचना अधिकारी न होगा तब तक कोई कानून समस्या का निदान नहीं कर सकता, सो माननीय सांसद महोदय कोई कानून बनाने से पहले उसके प्रभावों पर दृष्टिपात अवश्य करें, अन्यथा हवा हवाई कानूनों से कुछ हित नहीं होगा।
कुंवर वीरेन्द्र सिंह विद्रोही, ग्वालियर