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जनमानस

राजनीतिक सिद्धांतों का गिरता स्तर

भारत एक लोकतांत्रिक देश है। देश में कई राजनीतिक दल अस्तित्व में है। प्रत्येक पांच वर्ष में यदि कोई राजनीति अस्थिरता संकट को छोड़ दे तो चुनाव होता है। पांच वर्ष तक सत्ता पक्ष वाले विपक्ष पर विपक्ष वाले सत्ता पक्ष पर कीचड़ उछालने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखते हैं। इतिहास और धर्मशा गवाह है कि स्वार्थ से कोई अछूता नहीं रह सका है। देवता भी स्वार्थ से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके हैं, तो सामान्य मनुष्य की क्या औकात है, लेकिन हर एक चीज एक सीमित दायरे में रहकर करना उचित होता है। हमारे देश के राजनेता अपने स्वार्थों की पूर्ति करने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। नेताओं के द्वारा दल-बदल पहले भी किया जाता था, लेकिन पिछले कुछ समय से जिस प्रकार से दल बदल किया जा रहा है, वह इस बात की ओर इंगित करता है कि राजनीति का स्तर किस हद तक गिर चुका है। नेता वर्षों तक जिस दल और जिस व्यक्ति को पानी पी-पी कर गाली देते हैं, अपने क्षणिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए उसी दल और उसी व्यक्ति का दामन थाम लिया। हाल ही में जनता दल यू से भाजपा में शामिल होने वाले मो. साबिर अली और कांग्रेस से भाजपा में शामिल होने वाले जगदम्बिका पाल प्रमुख चेहरे हैं। हालांकि भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी और उसके बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विरोध के कारण उन्हें चौबीस घंटे के अंदर पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

विकास तिवारी, सांवेर

Updated : 12 April 2014 12:00 AM GMT
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