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ज्योतिर्गमय

असफलता से न डरें

हर कोई सफल बनना चाहता है। क्या आपने कभी सोचा है कि सफलता क्या है? आपने अपने प्रति एक सीमा निश्चित कर ली है, और जब भी आप अपनी सीमा से बाहर जाते हैं तो उसे सफलता मानते हैं। सफलता अपनी योग्यता के प्रति अज्ञानता है, क्योंकि आप अपने बारे में इतना ही जानते हैं कि आप एक सीमा तक ही कर सकते हैं। आप ये कभी नहीं कहते, 'मैंने सफलतापूर्वक एक केला खाया।Ó
जब आप अपनी सीमा निर्धारित करते हैं तो अपनी चेतना को सीमित करते हैं, अपनी शक्ति को सीमित करते हैं। जब आप सफल होते हैं तो आप गर्वित अनुभव करते हैं और यदि असफल होते हैं तो ग्लानि में या तनाव में आ जाते हैं। इन दोनों के कारण आप आनंद से वंचित रह जाते हैं, जो आप में संचित रूप से पड़ा हुआ है।
असफलता प्रक्रिया का ही हिस्सा है। अपने कर्म फल पर किसी का अधिकार नहीं है। यदि आपका ध्यान अंतिम फल पर ही हो तो आप कर्म नहीं कर पाएंगे। एक धावक को ही लें- यदि वह ये देखे कि उसके पीछे कौन दौड़ रहा है तो वह सफल नहीं होगा, चाहे वह कितना ही अच्छा क्यों न दौड़े।
आपको अपने ही ट्रेक पर दौडऩा होगा, चाहे आप हारे या जीते। आप इसे एक खेल की तरह लें, चाहे हारें या जीते, आप खेलें। इसी तरह असफलता से डरें नहीं। यदि आप असफल हो जाते हैं तो कोई बात नहीं, फिर भी करें।
जब भी कठिन समय आए, अपने पुरुषार्थ को जगाएं और चुनौतियों का सामना विश्वास से करें। परेशान न हों और अपने मन को केंद्रित रखें। जब भी हम तनावग्रस्त होते हैं और भयभीत होते हैं, हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। प्राणायाम, योग, ध्यान और सुदर्शन क्रिया आपकी सहायता करेगी. सबसे महत्वपूर्ण है, आप यह अनुभव करें कि अपने कठिन समय में अकेले नहीं है। आपके लिए एक अनदेखा हाथ कार्य कर रहा है।
यदि आप सफल हों तो क्या, यह एक और कार्य है जो आपने किया है, और आप इससे ज्यादा कर सकते हैं। यदि आपने कुछ अच्छा नहीं किया तो कोई बात नहीं, नहीं हो पाया। इस क्षण में आप इसे दुबारा करना चाहते हैं तो एक संकल्प लें और दुबारा जुट जाएं। इस बार आप पहले से बेहतर कर पाएंगे।

Updated : 5 March 2014 12:00 AM GMT
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