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ज्योतिर्गमय

आदमी क्या है

आदमी क्या है। कोई कहता है आदमी विचारों का समूह है। आदमी गलतियों का पुतला है। आदमी ही देवता है। आदमी को आदमी ने अलग-अलग तरीकों से परिभाषित किया है। जब जो समझ में आया या जब जैसा उसका आचरण रहा पर इन्सान ही इन्सान को समझ नहीं पाया। एक तरफ आदमी ऊंचाईयों को छूता है एक से एक प्रशंसनीय, साहस, के काम करता है तो कभी-कभी निन्दनीय, घृणास्पद, कि आश्चर्य होता है कि क्या यह आदमी है या हैवान। ऐसा अक्सर सुनने को मिलता है। वैसे कहा जाता है कि आदमी चाहे तो क्या नहीं कर सकता। आज सभ्यता, विज्ञान, यांत्रिकी की दौड़ में जो भी प्रगति हुई है दुनिया सिमट गई है। वह आदमी की ही देन है। आज जीवन की कितनी विधाएं हैं, कितने क्षेत्र हैं, कितना विकास हुआ है सब आदमी ने ही आदमियों को दिया है। पर आज भी ऐसी घटनाएं हो रही हैं कि प्रश्न उठता है कहां है सभ्यता का विकास। आदमी आदमी का दुश्मन हो रहा है। कोई भी, कभी भी किसी को भी मौत के घाट उतार सकता है यह हम रोज देख रहे हैं। धर्म, सम्प्रदाय, मजहब, अमीरी-गरीबी, जात-पात, ऊंच-नीच की दीवारों को गिरा नहीं पाया। यह मंदिर था या मस्जिद इसमें उसकी सारी प्रगति को चुनौती दी है। आदमी को जीवन सरलता से हल्के फुल्के ढंग से जीने के लिए कहा गया है पर लोग जीने दें तब न। जीवन कठिन से कठिन होता जा रहा है। बस वही सुखी है जिसे कुछ नहीं चाहिए ऐसा जे. कृष्णमूर्ति कहते हैं। आदमी के सरल जीवन की पराकाष्ठा है। ऐसे-ऐसे हरफन मौला इस देश, दुनिया में हुए। पौराणिक काल के राम कृष्ण से लेकर ईसा मसीह हजरत मुहम्मद साहब, दार्शनिकों में सुकरात, अरस्तु, लाओत्से, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, महर्षि अरविन्द, आज के युग के महात्मा गांधी, विनोबा भावे, और विदेशों में एक से एक दार्शनिक, संत, वैज्ञानिक, योद्धा हुए हैं जिन्होंने मानवीय सभ्यता को कितने सारे संदेश दिए हैं। एक से एक लेखक, कवि, राजनेता। आदमी की महिमा जितनी गाई जाए कम है। पर फिर भी आदमी छोटी-छोटी बातों में अटक गया। आखिर पूंछ अटकी क्यों? एक प्रश्न है। हाथी के निकलने के बाद पूंछ के लिए जगह क्यों नहीं बन पाई। कहां और क्यों हम मार खा रहे हैं कि एक तरफ हमने आसमान छू लिया। चांद पर पहुंच गए पर जमीन पर सही ढंग से रहना न आया। इतनी विसंगतियों, फसादों, बीमारियों, विपदाओं में आदमी ही है जो जी लेता है आखिर यह उसकी जीवटता को सिद्ध करता है। आदमी ने खूंखार जानवरों पर काबू पाया। कितनी वैज्ञानिक प्रगति की कि उसे स्वयं आश्चर्य होता होगा अपने कृतित्व पर। कहा जाता आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं। बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं... पर फिर आतंकवादी ये सब कैसे भूल जाते हैं क्या उन्हें आदमियों की संज्ञा दी जाए!! हर चीज फिर से बनाई जा सकती है पर आदमी नहीं। इंसान का जन्म लेना एक अलग प्रक्रिया है। इन्सान से ही इन्सान जन्म लेता है पर आप उसे पुनर्जीवित नहीं कर सकते। कभी कोई आश्चर्य घट जाए वह अलग बात है। पर वह अपवाद नियम नहीं बन सकता। इसलिए आदमियों को जीने दिया जाये क्योंकि आदमी ही नहीं रहेगा तो सारी प्रगति, आविष्कार किस काम आयेंगे। इसलिए मेरा अनुरोध है कि इस पर सोचें और जो इंसानियत और इंसान के दुश्मन बने हुए हैं उन्हें कुछ सुझाइये। बस यही मेरा संदेश है।आ

Updated : 5 Feb 2014 12:00 AM GMT
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