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ज्योतिर्गमय

सफलता का सोपान


जब आप अपनी सीमा निर्धारित करतें हैं तो अपनी चेतना को सीमित करते हैं, अपनी शक्ति को सीमित करते हैं।
जब आप सफल होते हैं तो गर्वित अनुभव करतें हैं और यदि असफल होते हैं तो ग्लानि या तनाव में आ जाते हैं। इन दोनों के कारण आप आनंद से वंचित रह जाते हैं, जो आप में संचित रूप से पड़ा है। यदि आपका ध्यान अंतिम फल पर ही होगा तो आप कर्म नहीं कर पाएंगे। आप इसे एक खेल की तरह लें।
चाहे हारें या जीतें, आप खेलें। यदि आप असफल हो जातें हैं तो कोई बात नहीं। फिर भी करें। कठिन समय में अपने पुरुषार्थ को जगायें और चुनौतियों का सामना विश्वास से करें। अपने मन को केंद्रित रखें। जब भी हम तनाव ग्रस्त होते हैं और भयभीत होते हैं, हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. प्राणायाम, योग, ध्यान और सुदर्शन क्रिया आपकी सहायता करेगी।
अनुभव करें कि आप कठिन समय में अकेले नही है। आपके लिए एक अनदेखा हाथ कार्य कर रहा है। जब आप प्रार्थना करतें है, 'मुझे इस तनाव से निकलना है और मुझे सहायता चाहिये। तब होने वाले परिवर्तन को तुरंत देख सकेंगे. भगवान कृष्ण को भोजन परोसा जा रहा था, वे खड़े हुए और बोले, 'नहीं, मुझे जाना है। गोपियों ने समझाने की कोशिश की-'पहले भोजन तो कर लो, लेकिन वे बोले, 'नहीं- मेरा एक भक्त मुश्किल में है और मुझे पुकार रहा है।
मुझे उसके लिए जाना होगा। ऐसा कहकर वे तेजी से दौड़ पड़े लेकिन दरवाजे से ही वापस आ गये। पूछने पर कृष्ण ने जवाब दिया, 'पहले तो उसने सोचा कि मैं ही एक सहायक हूं और मुझे पुकारने लगा। लेकिन बाद में उसने सोचा कि कोई और भी उसकी मदद कर सकता है। इसलियें मैं इंतजार कर सकता हूं। श्रद्धा की तीव्रता से परिणाम शीघ्र आते हैं. जीवन जीने के दो तरीके हैं।
एक सोच है, 'मैं अमुक कार्य करके खुश हो जाऊंगा। दूसरी सोच है, 'मैं खुश ही हूं, चाहे जो हो जाये। सवाल है कि आप कौन सा जीवन जीना चाहतें है। निर्णय ले लें, कि, 'जो हो जाये, मैं स्थिर रहूंगा, शांत रहूंगा और ईश्वर की सहायता मेरे लिए है। चाहे जो हो जाए, मैं निराश नही होऊंगा... यह सोच ही काफी है आपको ऊपर उठाने के लिए। अपने मन को हर स्थिति में शांत रखें। सफलता और असफलता दोनों में समान रहना ही सच्ची सफलता है।

Updated : 18 Feb 2014 12:00 AM GMT
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