जनमानस
कब रुकेगा यह खूनी खेल?
नक्सली समस्या को लेकर संप्रग सरकार ने इसके लिए जब एक केंद्रीय ढांचा तैयार किया तो राज्यों को यह नागवार गुजरा। नक्सल प्रभावित राज्यों में भी इस मामले में आपसी सहमति नहीं है। छत्तीसगढ़ में उनके खिलाफ एक समानांतर संगठन ही खड़ा कर दिया गया, जिसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं, जबकि बिहार ने सरेंडर नीति में बदलाव कर उन्हें जुबानी तौर पर मुख्यधारा में जोडऩे की कोशिश की। राज्यों और केंद्र के बीच तालमेल की कमी का फायदा नक्सलियों ने शुरू से उठाया है और लगातार अपना विस्तार करते रहे हैं। हालांकि, हाल के वर्षों में नक्सलियों की ताकत लगातार कम हुई है। उनके समर्थक उनसे निराश हुए हैं। गरीब तबके पहले की तरह उनसे नहीं जुड़ रहे। इसलिए उनके भीतर भी अपनी लाइन को लेकर बहस शुरू हो गई है। नक्सली कमजोर पड़े हैं, पर उनके पास अब भी हथियार हैं और कई लड़ाकू दस्ते हैं। ये हथियारबंद नक्सली हताश हैं और बिना सोचे-समझे हमले कर रहे हैं। ऐसे में सावधानी की जरूरत है। विधानसभा चुनाव के दौरान बेहद सतर्क रहना होगा ताकि कोई अनहोनी न हो क्योंकि चुनाव के सिलसिले में कर्मचारियों को बीहड़ इलाकों में जाना होगा।
ज्योति श्रीवास्तव, इन्दौर