जनमानस

कब्र से निकलते विवादों के मुर्दे


'ताजमहल' देश की सम्पत्ति है या वक्फ बोर्ड की? वह राजा मानसिंह के तेजोमहल की जमीन पर बना शिव मंदिर है या प्रेम का प्रतीक के एक मकबरा? इन बेतुके विवादों का अब 21वीं शताब्दी में कोई महत्व नहीं है। बस उनका महत्व इस कारण है कि वह जनमानस के मुद्दों और समस्याओं से भटके हुए एवं असफल हो चुके राजनेताओं के लिए एवं जनता का मनोरंजन तथा व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा में लगे हुए टी.व्ही चेनलों के वाक्य विलास का साधन मात्र है। ऐतिहासिक विवादों के जो मुर्दे शर्मनाक इतिहास की कर्बो में गड़े हैं, वह आज सामाजिक समरसता और सद्भावना को बनाए रखने के लिए उनका कब्रों में गड़े रहना अत्यन्त आवश्यक है। हां इतिहास की सत्य व्याख्या और आज की युवा पीढ़ी को उस ऐतिहासिक सत्य से परिचय कराया जाना भी देश के गौरवशाली इतिहास के लिए परम आवश्यक है क्योंकि इतिहास की दो प्रमुख विशेषताएं होती हैं, एक अतीत में की गई अपनी गलतियों से सीख लेकर उनमें भविष्य के लिए सुधार लाना तथा उनसे सावधान रहना तथा दूसरा सत्य को उद्घाटित कर उसे आने वाली पीढ़ी से अवगत कराना। भारत का सत्य एवं गौरवशाली इतिहास भारतीय संस्कृति से पूर्वाग्रह रखने वाले तत्कालीन इतिहासकारों एवं आधुनिक साम्यवादी इतिहासकारों के कथाकथित व्याख्याओं से दंशित होता रहा है। ताजमहल विवाद या अन्य ऐतिहासिक इमारतें, जिन्हें मुस्लिम शासकों के काल में विवादास्पद परिस्थितियों या फिर हिन्दुओं पर विजय के कथित प्रतीक के रूप में बनवाया गया, ऐसी इमारतों से जुड़े विवादों को आज के आधुनिक काल में ताबूत में गड़ा रहना अत्यन्त आवश्यक है। क्योंकि इन विवादों से आज किसी को गर्व नहीं, शर्म का अनुभव होगा।

दिलीप मिश्रा, ग्वालियर

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