अग्रलेख

जेहादियों के खिलाफ अभियान चलाएं भारत-बांग्लादेश
- संजीव पांडेय
एक तरफ जब पश्चिम बंगाल में जेहादियों की सक्रियता जोरों पर है, समय आ गया कि बांग्लादेश की सरकार के साथ मिलकर जेहादियों की कमर तोड़ी जाए। बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार ने जेहादियों के खिलाफ इरादे स्पष्ट कर दिए है। इस्लामी जेहाद को वे बांग्लादेश की धरती पर पनपने नहीं देंगी। जेहादियों के सबसे बड़े समर्थक दल जमात-ए-इस्लामी के नेता मोती उर रहमान निजामी को 1971 के युद्ध अपराध के मामले में मौत की सजा मिली है। निजामी भारत विरोधी जेहादी है जिसने पाकिस्तान के खिलाफ चल रहे स्वतंत्रता संग्राम में बांग्लादेशी नागरिकों की हत्या, बलात्कार आदि का घोर अपराध किया था। बांग्लादेश की अदालत ने मोती-उर-रहमान को युद्ध अपराध का दोषी माना है और उसे मौत की सजा दी है। मोती-उर-रहमान जेहादियों का सिर्फ समर्थक ही नहीं है, बल्कि भारत के अंदर सक्रिय अलगाववादियों का भी समर्थक रहा है। मोती-उर-रहमान को इससे पहले भी भारत में आतंकी संगठनों को हथियार आपूर्ति के एक मामले में सजा हुई है। भारत की पूर्वी सीमा के अंदर इस्लामी जेहादियों को जमात-ए-इस्लामी जोरदार समर्थन देने वाला दल है।
रहमान को मिली मौत की सजा बांग्लादेशी कट्टरपंथियों को भारी झटका है। आईएसआई समर्थक जेहादी गुट और ग्लोबल जेहाद से प्रेरित जेहादियों को बांग्लादेशी प्रतिष्ठान ने जोरदार चोट मारी है। इस सजा के बाद स्पष्ट है कि शेख हसीना की सरकार जेहादी तत्वों से दो-दो हाथ करने को राजी है और इसमें वो भारत का सक्रिय सहयोग चाहती हैं। अब समय आ गया है कि पूर्वोत्तर सीमा पर सक्रिय जेहादी संगठनों को जोरदार चोट दोनों देश की सरकार एक साथ मारे। क्योंकि खतरा अब आईएसआई के साथ ग्लोबल जेहादियों का भी है। अमन अल जवाहिरी के नए संगठन अलकायदा इन इंडियन सबकंटिनेंट का कार्यक्षेत्र भारत और बांग्लादेश प्रमुख तौर पर है। हाल ही में इस संगठन के प्रमुख आसिम उमर ने अपने अंग्रेजी मुखपत्र रीसरजेंस में भारत और बांग्लादेश के मुसलमानों को जेहाद में सक्रिय होने की अपील की है। 177 पृष्ठ के इस मैगजीन में खुद उमर ने एक लेख लिखा है जिसमें उन्होंने भारत और बांग्लादेश के मुसलमानों को उनका गौरवमयी इतिहास याद दिलाया गया। उमर ने कहा है कि जिस देश पर मोहम्मद बिन कासिम, मोहम्मद गजनवी, औरंगजेब और टीपू सुल्तान ने राज किया वहां के मुसलमानों को दलितों की हालत में रखा गया है। लेकिन इन राजाओं के आध्यात्मिक पुत्र इस बेइज्जती को बरदाश्त नहीं करेंगे। उसने भारत और बांग्लादेश के मुसलमानों से अफगानिस्तान के जेहाद में भी शामिल होने की अपील की है। गौरतलब है कि अधिकतर जेहादी साहित्य का अनुवाद अन्य भारतीय भाषाओं के बजाए बंगाली में हो रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य बांग्लादेश की 15 करोड़ से ज्यादा मुस्लिम आबादी को वहां की धर्मनिरपेक्ष सरकार के खिलाफ खड़ा करना है।
बांग्लादेश की सरकार अलकायदा इन इंडियन सबकंटिनेंट का खतरा समझ रही है। बांग्लादेश में जमात समर्थक राजनीतिक दल और संगठन इस ग्लोबल जेहादी संगठन के सहयोगी बन रहे हैं। लेकिन शेख हसीना की सरकार इससे टक्कर लेने को तैयार है। यही कारण है कि मोतीउर रहमान निजामी को मौत की सजा मिली। यही नहीं बांग्लादेश सरकार लगातार भारत से बातचीत कर बंगाल में सक्रिय जेहादियों की चिंता जता रही है। पिछले दिनों बांग्लादेश इंटेलिजेंस एजेंसियों के अधिकारियों ने भारतीय अधिकारियों को साफ कहा था कि बांग्लादेश से ज्यादा खतरनाक स्थिति में इस समय पश्चिम बंगाल पहुंच चुका है। यहां पर जेहादी गढ़ बना चुके हंै। उन्होंने यह भी कहा कि बांग्लादेश में वो जेहादियों से निपट लेंगे, लेकिन बंगाल में भारत की सरकार सक्रिय कार्रवाई जेहादियों के खिलाफ करे। दरअसल 2000 के बाद सीपीएम और अब तृणमूल सरकार के कार्यकाल में जेहादियों को खुली छूट मिली और वे अपनी स्थिति मजबूत करते गए।
भारत के लिए बांग्लादेश काफी महत्वपूर्ण है। खासकर व्यापार और सामरिक दृष्टिकोण से। भारत का पूर्वी एशिया का एक प्रमुख दरवाजा बांग्लादेश है। इसलिए भारत विरोधियों जेहादियों को रोकना भारत की प्राथमिकता होनी चाहिए। बांग्लादेश भी दक्षिण एशिया में भारत-चीन ट्रेड संघर्ष से अछूता नहीं है। बांग्लादेश के पास महत्वपूर्ण समुद्री तट है। इसके पास गैस का भी बड़ा भंडार है। बांग्लादेश भारत को बर्मा समेत दक्षिण एशिया से जोडऩे वाला एक आर्थिक कॉरिडोर भी है। जेहादी भारत के इस आर्थिक कॉरिडोर को समाप्त करना चाहते हंै। पहले भी उन्होंने भारत को भारी नुकसान इस कॉरिडोर में किया है। 1997 में भारत ने बर्मा से भारत तक बर्मा-बांग्लादेश-भारत गैस पाइप लाइन का प्रस्ताव बनाया था। लेकिन इस प्रस्ताव को जेहादी और कट्टरपंथी भारत विरोधी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने सिरे नहीं चढऩे दिया। बांग्लादेश के कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी और खालिदा जिया की तत्कालीन सरकार ने भारत के हितों पर चोट पहुंचाने के लिए इस पाइप लाइन के एवज में भारत से नाजायज कई छूटें मांगी ताकि प्रस्ताव बीच में ही फंस जाए। उन्होंने भूटान और नेपाल से भारत के रास्ते बिजली आयात और बांग्लादेशी शर्तों पर भूटान और नेपाल के व्यापारियों को बांग्लादेश आने की अनुमति देने की मांग कर दी। इसे भारत ने अस्वीकार कर दिया। यह बांग्लादेश में सक्रिय कट्टरपंथी जमात की चाल थी जो इस गैस पाइप लाइन को नहीं बनने देना चाहते थे। लेकिन शेख हसीना की सरकार अब इस प्रोजेक्ट को आगे गति देना चाहती है। क्योंकि इसका सीधा लाभ भारत और बांग्लादेश दोनों को है। बांग्लादेश का उत्तरी पूर्वी इलाके में गैस भंडार है। इस गैस को भारत खरीदना चाहता है ताकि पूर्वी राज्यों के लिए गैस आधारित बिजली देकर बिजली की समस्या दूर की जाए। अमेरिकी कंपनी उनाकोल ने भी 2001 में इसके मद्देनजर 1363 किलोमीटर लंबा एक गैस पाइप लाइन का प्रस्ताव बनाया। इस पाइप पाइन से 500 मिलियन क्यूबिक फीट गैस प्रतिदिन बांग्लादेश के हबीबगंज से भारत के हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर पाइप लाइन तक भेजना था। लेकिन जमात-ए-इस्लामी ने इस पाइप लाइन का विरोध किया है और 2004 में उनाकोल ने यह प्रस्ताव वापस ले लिया।
बांग्लादेश के जेहादी संगठन भारत के आर्थिक हितों के खिलाफ लगातार हंगामा कर रहे हंै। भारतीय कंपनी टाटा ने खालिदा जिया की सरकार के समय बांग्लादेश के अंदर 3 बिलियन डालर की लागत वाले तीन गैस आधारित प्रोजेक्टों पर निवेश की इच्छा दिखायी थी। इसमें 2 मिलियन टन स्टील प्लांट, 1 मिलियन टन फर्टिलाइजर प्लांट और 1000 मेगावाट का गैस आधारित बिजली प्लांट था। लेकिन 2006 में खालिदा जिया ने इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया। उनका कहना था कि इससे देश में एक नया राजनीतिक विवाद खड़ा होगा। दरअसल जेहादी संगठनों ने खालिदा जिया को इस प्रस्ताव को रद्द करने के लिए कहा था। ए
