जनमानस

सार्क की सार्थकता पर सवाल


नेपाल की राजधानी काठमांडू में दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन यानी कि सार्क का 18 वां सम्मेलन सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन में दक्षिण एशिया के सभी देशों ने हिस्सा भी लिया। जिसमें भारत की ओर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पाकिस्तान की ओर से प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी शामिल हुए। लेकिन इन दोनों नेताओं की नजरें न मिलना, एक दूसरे से दूर-दूर रहना सार्क जैसे महत्वपूर्ण संगठन की सार्थकता पर सवाल खड़े करता है। इस बात की उम्मीद कैसे की जा सकती है कि जब दक्षिण एशिया के दो प्रमुख और बड़े देश यानी कि भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे से बात नहीं करेंगे तो भविष्य में सहयोग कैसे करेंगे। जबकि सार्क जैसा संगठन एक-दूसरे की सहायता के लिए बना है। समृद्धि और सम्पन्नता के लिए सार्क का गठन किया गया है। अगर दोनों ही देशों के प्रधान ऐसे ही व्यवहार करेंगे तो निश्चित रूप से प्रत्येक मुद्दे पर इनके मतभेद उभर कर सामने आएंगे, जो कि संगठन के लिए अच्छा नहीं होगा। हालांकि देखा जाए तो पाकिस्तान इस मामले में कहीं न कहीं गलती पर है। पाकिस्तान 'चोरी और सीना जोरी' कहावत को चरितार्थ करता रहता है, जबकि भारतीय प्रधानमंत्री स्वाभिमान के साथ देश के साथ खड़े दिखाई देते हैं। लेकिन इन सभी बातों से इतर देखा जाए तो आज सार्क जैसे संगठन की सार्थकता पर सवाल उठना आवश्यक है। यह सवाल संगठन के बाकी देशों के लिए भी चिंता का विषय होना चाहिए।

सुमित राठौर, ग्वालियर

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