बस्ते का बोझ, मासूमों को दे रहा है बीमारियां

ग्वालियर। खेलने- कूदने की उम्र में जहां बच्चों पर पढ़ाई का अत्यधिक बोझ है। वहीं इन मासूमों पर बढ़ते बस्ते का बोझ इन्हें कई प्रकार की गंभीर बीमारियों का शिकार बना रहा है।
अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने और दूसरों से प्रतियोगिता के चलते अभिभावक भी इस ओर अधिक ध्यान नहीं देते। इस स्थिति में अभिभावक तथा स्कूल संचालक छोटी उम्र के बच्चों के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं। जिसके कारण नर्सरी और केजी में पढऩे वाले इन मासूमों पर किताबों से भरे बस्ते का बोझ बढ़ता जा रहा है। बच्चों के जीवन से किए जा रहे इस खिलवाड़ पर जिला प्रशासन भी गंभीर नजर नहीं आ रहा है।
आमतौर पर कक्षा 5 के एक छात्र के बस्ते का बोझ 10 किलो होता है जबकि यह भार बच्चे के शरीर के वजन का अधिकतम 15 फीसदी होना चाहिए पर निजी स्कूलों में बस्ते का बोझ लगातार बढ़ता ही जा रहा है और इसके लिए किसी निर्धारित मापदंड पर अमल नहीं किया जाता। भारी-भरकम स्कूल बैग, टिफिन बॉक्स तथा पानी की बोतल लेकर झुकी कमर और तिरछी चाल चलते मासूम किसी भी स्कूल में आते-जाते दिख जाएंगे। शासकीय स्कूलों में बस्ते का वजन जरूर कम है, पर निजी स्कूलों में ज्यादा है। यहां नर्सरी, केजी 1 तथा केजी 2 के बस्ते का वजन 4 से 5 किलोग्राम तक है। इन मासूमों से स्कूल बैग सहजता से उठता नहीं है, लेकिन वे इसे ढोने के लिए मजबूर दिखाई देते हैं।
बस्ते के बोझ से वह विभिन्न बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। इसमें कंधे, कमर तथा पीठ दर्द प्रमुख हैं। क्षमता से अधिक वजन उठाने के कारण बच्चे जल्दी थक जाते हैं, वे तनावग्रस्त हो रहे हैं। हालांकि अभिभावक नाराज तो होते हैं कि पहले क्यों नहीं बताया गया, लेकिन एडमिशन में काफी पैसा लगने के बाद वे कुछ कर भी नहीं पाते।