देखने वाले दहल गए प्रशासन पर कोई असर नहीं
पुल हादसा मामले में नहीं हुई कोई कार्रवाई जनहानि न होने के लिए मना रहे प्रभु का शुक्रगुजार
भिण्ड। पुल टूटने का इतना बड़ा हादसा हुआ कि समूचे प्रदेश के लिए चर्चित खबर बनी। जिसने भी पुल टूटने का दृश्य देखा, वह भी दहल गया। हादसा खतरनाक था, यह तो भगवान की खैर रही कि कोई जनहानि नहीं हुई, लेकिन पुल टूटने के इतने बड़े हादसे को न तो जिला प्रशासन ने गंभीरता से लिया और न ही लोक निर्माण विभाग सेतु शाखा के अधिकारियों पर कोई असर हुआ। यही नहीं, खनिज विभाग के अधिकारी भी इस घटना से अपना कोई सरोकार नहीं मान रहे। बेशक पुल से भारी वाहन न गुजरें, ऐसा बोर्ड पुल के पास लगा पाया गया, लेकिन यह बोर्ड किसने लगाया, क्यों लगाया, कब लगाया? यह कोई बताने वाला नहीं है। पुलिस भी इस पूरे घटनाक्रम से अनजान है। क्वारी नदी पर कनावर के समीप बना पुल टूटने की खबर बेशक सुर्खियों में आज रही हो, लेकिन इस हादसे पर शासन-प्रशासन में कोई हलचल नहीं है। आखिर पुल टूटने का इतना बड़ा हादसा क्यों हुआ, और इसके लिए कौन जिम्मेदार है? यह गंभीर सवाल है, पर व्यवस्था तंत्र में इसका जवाब कोई देने को तैयार नहीं है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक पुल पर क्षमता से अधिक भारी वाहन गुजरने के कारण पुल में के्रक्स आ गए थे, इसलिए कुछ समय के लिए भारी वाहनों को रोक दिया गया था, लेकिन इस पर अमल नहीं किया गया। लोक निर्माण विभाग की सेतु संभाग इकाई द्वारा पुल का निर्माण कराया गया है। इस विभाग के अधिकारी भी कंस्ट्रक्शन कंपनी की गुणवत्ता के खिलाफ कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं। उसकी बजह यदि गुणवत्ता में कमी पाई जाती है तो ठेकेदार से अधिक जिम्मेदार इस पुल के पर्यवेक्षक अधिकारी होंगे, जिन्होंने पुल की राशि 1 करोड़ 70 लाख का भुगतान पूरी फिटनेस देकर किया गया है। निश्चित रूप से पुल टूटने की बजह घटिया निर्माण कहा जा सकता है, लेकिन इससे भी बड़ी एक बजह भारी वाहनों का गुजरना है। यह बात अधिकृत रूप से सेतु संभाग के अधिकारियों ने तो नहीं कही, लेकिन एक अन्य तकनीकी विशेषज्ञ से हुई चर्चा में पता चला कि इस पुल की क्षमता 14 टन एक्सल थी, लेकिन वाहन 40 टन एक्सल से अधिक के गुजर रहे थे। दीपावली के समय इस मार्ग पर अचानक आई रुकावट के कारण इस पुल पर 6 से 7 ट्रक ओव्हरलोड खड़े रहे, जिससे पुल में के्रक्स आ गए थे, जिसकी जानकारी संबंधित अधिकारियों को हुई तो उनके द्वारा पुल को ठीक कराने की बजाय उस पर भारी वाहन रोकने का एक वोर्ड लगाकर लीपापोती की गई, जो गंभीर जांच का विषय है। तथ्यात्मक पहलुओं पर नजर डालें तो इस पुल का निर्माण वर्ष 2004 में शुरू हुआ था। इस पुल का निर्माण होने में करीब छह वर्ष लगे। यानीकि 2010 में इस पुल का कार्य पूर्ण किया जा चुका था। यह पुल करीब 160 मीटर लम्बा और 7.30 मीटर चौडा बनाया गया था। पुल के निर्माण में किस तरह की अनियमितताएं हुई हैं? इसका अंदाजा तब लगा, जब पुल टूटकर तीन हिस्सों में बंट गया। पुल निर्माण में 16 एमएम के सरिया का प्रयोग किया गया था। पुल टूटने के हादसे ने तमाम यक्ष प्रश्न खड़े कर दिए हैं, जिनके जवाब की तलाश है। यदि पुल ओव्हरलोड वाहनों के कारण क्षतिग्रस्त हुआ तो पुल पर ओव्हरलोड़ वाहनों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद वाहन क्यों गुजर रहे थे? यही नहीं रेत से भरे ट्रक के कारण टूटे पुल पर अभी तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई है? यह ट्रक ओव्हरलोड था तो क्या उसके पास रायल्टी परिवहन पास था? इसकी जानकारी लेने की कोशिश खनिज विभाग के अधिकारियों ने नहीं की।