अग्रलेख

कश्मीर में भाजपा है सत्ता की प्रमुख दावेदार
- कृष्णमोहन झा
भारतीय जनता पार्टी ने गत लोकसभा चुनावों के बाद हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभाओं के चुनावों में जो ऐतिहासिक कामयाबी हासिल की है उसके फलस्वरूप अगर इस समय पार्टी के हौसले बुलंदी की ऊंचाइयों को स्पर्श कर रहे हैं तो इसका हक पार्टी को मिलना ही चाहिए। जम्मू कश्मीर तो इन राज्यों में उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता पर है। अगर देश के इस उत्तरी प्रदेश के मतदाताओं ने भाजपा के हाथों में सत्ता की बागडोर सौंपने का मन बना लिया तो स्वतंत्र भारत के राजनीतिक इतिहास में भाजपा अपनी इस सफलता को स्वर्णाक्षरों में अंकित कराने की पूरी अधिकारी होगी। इसलिए यह स्वाभाविक ही है कि केन्द्र में सत्तारूढ़ वर्तमान सरकार के सर्वशक्तिमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जम्मू-कश्मीर के चुनावों में विशेष दिलचस्पी दिखा रहे हैं।
विगत कुछ माह में जम्मू-कश्मीर के मामलों में मोदी सरकार ने जो गहरी रुचि प्रदर्शित की है उसके निहितार्थों को समझना कठिन नहीं है। जम्मू-कश्मीर की जनता का भरोसा खो चुके वर्तमान मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी प्रधानमंत्री की अद्भुत राजनीतिक सूझबूझ और रणनीतिक कौशल से भली-भांति वाकिफ हैं। मोदी के इन गुणों के कायल तो उमर अब्दुल्ला उस समय ही हो गए थे जब प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में मोदी देश भर का दौरा कर रहे थे। जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री को शायद उसी समय यह अहसास हो गया था कि केन्द्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री पद की बागडोर मोदी के हाथों में आने पर राज्य में भी भाजपा को उनकी करिश्माई लोकप्रियता का लाभ मिलना तय है। इसलिए उमर अब्दुल्ला ने राज्य में अपना और अपनी पार्टी नेशनल कान्फ्रेंस का भविष्य निरापद बनाने के लिए कुछ माह पूर्व उस कांग्रेस पार्टी के साथ अपने दल का गठबंधन तोड़ दिया था जिसके साथ मिलकर पांच सालों तक वे राज्य में सत्ता सुख का उपभोग करते रहे। यह बात अलग है कि कांग्रेस से नाता तोड़कर भी वे राज्य में अपनी सत्ता बचाने की स्थिति में नहीं रह गए हैं। नेशनल कान्फ्रेंस ने इस बार अकेले दम पर ही विधानसभा चुनावों का सामना करने का फैसला तो अवश्य कर लिया है परंतु उमर अब्दुल्ला अपनी पार्टी की जीत के प्रति कतई आश्वस्त नहीं है।
दीपावली के मौके पर प्रधानमंत्री ने राज्य का दौरा कर बाढ़ पीडि़तों के प्रति जो हमदर्दी दिखाई उसका यह असर हुआ कि प्रधानमंत्री मोदी एवं भाजपा के प्रति राज्य की जनता के नजरिए में भारी परिवर्तन आने लगा है। विकराल बाढ़ से मची तबाही के दौरान अलगाववादी संगठनों के लोगों का जब कोई अता पता ही नहीं था तब भाजपा व उससे जुड़े संगठनों के कार्यकर्ताओं ने बाढ़ पीडि़तों के प्रति संवेदना प्रदर्शित कर जनता से जुड़ाव कायम करने में सफलता पाई। प्रधानमंत्री मोदी जम्मू-कश्मीर की जनता के दिल में अब ऐसी छवि बना चुके हैं कि राज्य के बाकी राजनीतिक दलों को भाजपा के बढ़ते जनाधार में सेंध लगाने में सफलता नहीं मिल सकती। मोदी भली-भांति यह जानते हैं कि अपनी रणनीति को सुनियोजित रूप प्रदान कर वे राज्य में भाजपा को सत्ता के नजदीक तक पहुंचाने में कामयाब हो सकते हैं।
जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनावों के पूर्व राज्य में जो माहौल इस समय दिखाई दे रहा है उससे यह संकेत तो अवश्य मिलता है कि अब केवल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ ही भाजपा ने भी सत्ता के प्रबल दावेदार के रूप में राज्य में अपना स्थान सुनिश्चित कर लिया है। इस हकीकत को पीडीपी की मुखिया महबूबा मुफ्ती भी स्वीकार करती हैं और उन्हें यह अहसास हो चुका है कि राज्य में किसी भी दल के लिए अगली सरकार के गठन में भाजपा की भूमिका की उपेक्षा करना संभव नहीं होगा। राज्य में इस समय जो राजनीतिक माहौल है वह यही संकेत दे रहा है कि आगामी विधानसभा चुनावों में असली मुकाबला तो पीडीपी और भाजपा के बीच होने जा रहा है। जाहिर है कि अगले चुनाव में राज्य की जनता को एक राष्ट्रीय और एक क्षेत्रीय दल के बीच में से किसी एक को सत्ता की बागडोर सौंपना है और अगर उसे राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल होना है तो राष्ट्रीय दल को सत्ता संभालने का जनादेश देना वह पसंद करेगी। कांग्रेस और नेशनल कान्फ्रेंस समझ चुके हैं कि उन्हें तीसरे और चौथे स्थान की ही लड़ाई लडऩा है।
राज्य विधानसभा के चुनावों में इस बार अलगाववादी संगठनों को अपनी रणनीति तय करने में खासी परेशानी महसूस हो रही है। चुनावों का बहिष्कार करने की अपील करने का साहस भी नहीं जुटा पा रहे हैं। शायद उन्हें यह भय सता रहा है कि चुनावों का बहिष्कार करने की अपील राज्य के उन मतदाताओं पर बेअसर रहेगी जिन्हें बाढ़ की विनाशलीला से बचाने में अलगाव संगठनों की कोई ऐसी भूमिका नहीं रही जिससे बाढ़ पीडि़तों को उनसे दिली जुड़ाव महसूस होता। दैवी आपदा की इस घड़ी में अलगाववादियों का कहीं कोई अता पता नहीं था। हद तो तब हो गई जब बाढ़ पीडि़तों का हमदर्द बनने के बजाय उनसे अलगाववादियों ने यह अपील कर डाली कि वे सेना के जवानों की मदद स्वीकार न करें। बाढ़ पीडि़तों की मदद के लिए सेना वहां जिस तरह जी जान से जुटी रही उससे राज्य के लोगों का जवानों के प्रति नजरिया भी बदल गया है। अलगाववादियों के बारे में अब जनता यह धारणा बना चुकी है कि उन्हें जनता के दुखदर्द से कुछ लेना देना नहीं है। वे राज्य में केवल अशांति और अराजकता फैलाना चाहते हैं।
केन्द्र में मोदी सरकार के गठन के बाद राज्य के राजनीतिक समीकरण तेजी से बदले हैं। राज्य के विकास के लिए मोदी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के फलस्वरूप निर्मित वातावरण का लाभ निश्चित रूप से भाजपा के पक्ष में जाएगा। स्वतंत्र भारत के इतिहास में भाजपा जम्मू-कश्मीर विधानसभा के अब तक के चुनावों में पहली बार इतनी दमदार उपस्थिति दर्ज करा रही है कि राज्य के दूसरे राजनीतिक दल दांतों तले अंगुली दबाने के लिए विवश हो गए हैं। 87 सदस्यीय विधानसभा की 75 सीटों पर उसने अपने प्रत्याशी उतारने का जो फैसला किया है वह उसके इसी आत्मविश्वास का परिचायक है कि वह स्वयं को राज्य में सत्ता की दहलीज तक पहुंचा हुआ मानने लगी है। पार्टी ने अपने लिए राज्य विधानसभा की 44 सीटों पर जीत हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया है और लोकसभा चुनावों के बाद से अब तक राज्य में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता में लगातार जो इजाफा हुआ है उसे देखते हुए यह नतीजा निकालना गलत नहीं होगा कि जम्मू कश्मीर में पहली बार भाजपा की स्वीकार्यता और विश्वसनीयता में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। भाजपा को 44 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाबी न मिलने की स्थिति में अगर उसे कुछ दूसरे दलों का सहयोग लेकर सरकार बनाने का मौका भी मिलता है तो भाजपा उसके लिए अभी से तैयार हो चुकी है। राज्य की पीपुल्स कान्फ्रेंस पार्टी के मुखिया के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विगत दिनों हुई बातचीत भी शायद भाजपा की इसी तैयारी का हिस्सा थी। सज्जाद लोन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अपनी मुलाकात के बाद जिस तरह उनकी तारीफ की उससे यह संकेत मिलता है कि चुनावों के बाद सरकार बनाने के लिए भाजपा लोन की पार्टी का सहयोग ले सकती है। गौरतलब है कि सज्जाद लोन ने मोदी को महान व्यक्ति बताते यहां तक कहा था कि वे मोदी को अपने बड़े भाई के रूप में देखते हैं। जाहिर है कि राज्य में सरकार बनाने के लिए भाजपा को किसी दल के सहयोग की आवश्यकता पड़ी तो सज्जाद लोन को निराश नहीं करेंगे।
श्रीनगर में भाजपा की उम्मीदवार डॉ. हिना बट ने कहा है कि अनुच्छेद 370 का जारी रहना राज्य के हित में है क्योंकि यह अनुच्छेद इस राज्य की पहचान बन चुका है। भाजपा को इस मुद्दे से निपटने के लिए कूटनीतिक कौशल का परिचय देना होगा लेकिन केवल एक इसी मुद्दे के कारण भाजपा के पक्ष में बने माहौल में कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ेगा। भाजपा को चुनौती केवल पीडीपी की ओर से मिल सकती है लेकिन उसकी मुखिया महबूबा मुफ्ती जिस तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरोध में कुछ भी बोलने से बचती रही हैं उससे यह संदेश मिलता है कि वे भी भाजपा के बढ़ते प्रभाव को स्वीकार कर रही हैं और उन्हें यह अंदाजा लग चुका है कि प्रधानमंत्री या भाजपा के विरूद्ध बोलते समय उन्हें विशेष सावधानी बरतनी होगी अन्यथा उनके दल को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
कुल मिलाकर सारे देश की निगाहें जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनावों पर टिकी हुई हंै। ये चुनाव जहां एक ओर भारतीय जनता पार्टी को जम्मू-कश्मीर में इतिहास रचने का अवसर प्रदान कर सकते हैं वहीं दूसरी ओर राज्य में उसके सत्तारूढ़ होने से वहां विकास के नए युग की शुरुआत होना भी तय है। राज्य की जनता भी अब यही चाहती है। निश्चित रूप से वह भी राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल होने का मन बना चुकी है। पांच चरणों में होने वाले चुनावों के नतीजे भी यही साबित करेंगे।
(लेखक जाने माने राजनीतिक विश्लेषक हैं)
