Home > Archived > ज्योतिर्गमय

ज्योतिर्गमय

आत्मा की उन्नति


जब मनुष्य आत्मानुभव करने लगता है तो उसकी इच्छा, आकांक्षा, अभिरुचि उन्हीं कामों की ओर मुड़ जाती है, जिनसे आध्यात्मिक सुख मिलता है। चोरी, हिंसा, व्यभिचार, छल एवं अनीति भरे दुष्कर्म करते हुए अन्त:करण में एक प्रकार का कोहराम मच जाता है, पाप करते हुए पांव कांपते हैं और कलेजा धड़कता है. इसका तात्पर्य है कि ये काम आत्मा की रुचि के विपरीत है। किन्तु जब मनुष्य परोपकार, परमार्थ, सेवा, सहायता, दान, उदारता, त्याग, तप से भरे हुए पुण्य कर्म करता है तो हृदय के भीतरी कोने में सन्तोष, आनन्द व उल्लास जगता है। यानी पुण्य कर्म आत्मा के स्वार्थ के अनुकूल है।
आत्मा की आवाज सुनने वाले और उसके अनुसार चलने वाले सदा पुण्य कर्म ही करते हैं। पाप की ओर उनकी प्रवृत्ति ही नहीं होती, इसलिए वैसे काम उनसे बन भी नहीं पड़ते। लोक-परलोक में आत्मिक सुख शान्ति सत्कर्म के ऊपर निर्भर है। इसलिए आत्मा का स्वार्थ पुण्य प्रयोजन में है। शरीर का स्वार्थ इसके विपरीत है। इन्द्रियां और मन संसार के भोगों को अधिकाधिक चाहते हैं। मनुष्य नाशवान शरीर की इच्छाएं पूर्ण करने में जीवन खर्च करता है और पापों का भार इक_ा करता रहता है. इससे शरीर और मन का अभिरंजन तो होता है, पर आत्मा को इस लोक और परलोक में कष्ट उठाना पड़ता है। तप, त्याग, संयम, ब्रह्मचर्य, सेवा, दान आदि से शरीर को कसा जाता है। तब ये सत्कर्म सधते हैं।
शरीर के स्वार्थ और आत्मा के स्वार्थ आपस में एक-दूसरे के विरोधी हैं। हमें इनमें से एक को चुनना है। जो अपने को शरीर समझते हैं, वे आत्मा के सुख की परवाह नहीं करते और शरीर सुख के लिए भौतिक सम्पदाएं, भोग सामग्रियां एकत्रित करने में ही सारा जीवन व्यतीत करते हैं। ऐसे लोगों का जीवन पशुवत निकृष्ट प्रकार का हो जाता है। यश के लिए, अहंकार तृप्ति के लिए, दूसरों पर सिक्का जमाने के लिए वे कभी-कभी धर्म का आश्रय ले लेते हैं। वैसे उनकी मन:स्थिति सदैव शरीर से सम्बन्ध रखने वाले स्वार्थ साधनों में ही निमग्न रहती है।
परन्तु जब मनुष्य आत्मा का स्वार्थ स्वीकार कर लेता है, तो उसकी अवस्था विलक्षण व विपरीत हो जाती है। भोग और ऐश्वर्य के प्रयत्न उसे बालकों के खिलवाड़ जैसे प्रतीत होते हैं। शरीर जो वास्तव में आत्मा का वस्त्र या औजार मात्र है, उसे इतना महत्वपूर्ण नहीं लगता। आत्म भाव में जगा मनुष्य अपने को आत्मा मानता है और आत्म कल्याण, आत्म सुख के कार्यों में ही अभिरुचि रखता है।

Updated : 1 Nov 2014 12:00 AM GMT
Next Story
Top