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जनमानस

सियाचिन ग्लेशियर अस्तित्व के लिए संघर्ष

दीवाली पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सियाचिन ग्लेशियर में कुछ समय सैनिकों के साथ रहकर यह सन्देश देने की कोशिश की है कि सियाचिन में जिन असामान्य, असहज एवं अविश्वसनीय परिस्थितियों में भारतीय सैनिक अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह कर रहे हैं उन परिस्थितियों से वे पूरी तरह वाकिफ हैं। प्रधानमंत्री की इस यात्रा ने निश्चित ही सैनिकों का मनोबल बढ़ाया होगा। सियाचिन ग्लेशियर में सैनिकों की मानसिक एवं शारीरिक स्थिति का अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्हें माइनस 50 डिग्री सेल्सियस तापक्रम पर भी ड्यूटी करनी होती है। यहां पर युद्ध की तुलना में मौसम के कहर के कारण होने वाली दुर्घटनाओं की संख्या अधिक है।
सियाचिन में अगस्त 2014 में 15 राजपूताना रायफल्स के एक हवलदार गया प्रसाद का शव 18 वर्ष बाद मिला। इस घटना से सियाचिन के मौसम का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है। अहिंसा के पुजारी गांधी के देश में सियाचिन जैसी अमानवीय परिस्थितियों में सैनिकों को तैनात करने की मजबूरी एक गम्भीर एवं चिन्तनीय विषय होना चाहिए। संबंधित एवं प्रभावित पक्ष आपस में बैठकर इस समस्या का कोई ऐसा हल निकाल सकते हैं जिससे सैनिकों को इन अमानवीय परिस्थितियों से दूर रखा जा सके। हालांकि सरकार द्वारा सियाचिन में पदस्थ सैनिकों को हर संभव सहायता उपलब्ध करवाने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन सियाचिन जैसी जगहों पर सैनिकों की तैनाती संबंधित पक्षों में अविश्वास की पराकाष्ठा का सबसे बड़ा उदाहरण है। देश की सीमाओं की सुरक्षा को सर्वोपरि रखते हुए हमें इस ओर संजीदगी से विचार करना चाहिए।

प्रो. एस. के. सिंह, ग्वालियर

Updated : 29 Oct 2014 12:00 AM GMT
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