जनमानस
इस्लामी दंड कानून बाहर?
मीठा-मीठा गप-कड़वा-कड़वा थू। मुस्लिम पर्सनल लॉ जिसमें बहुविवाह, सम्पत्ति, उत्तराधिकार वाले पुरुष वर्चस्व प्रधान कानून पसंद कर सम्मिलित किए गए तथा इस्लामी दंड कानून जो इन पर नैतिक आपराधिक अंकुश लगा नियमन करते हैं, नापसंद कर बाहर कर दिए गए। जबकि वर्तमान समय व धर्मनिरपेक्ष भारत में तत्कालीन अरब की कबीलाई संघर्षों से विधवा हुई महिलाओं के न पुनर्वास की समस्या है न परिस्थितियां। आज इस्लाम का प्रतिनिधित्व तालिबान अलकायदा, आईएस, बोकोहरम तथा इनके भारतीय संस्करण सिमी मुजाहिद्दीन कर रहे हैं। संभवत: अयमान अल जवाहिरी का वीडियो हमला आधे-अधूरे को पूर्ण इस्लामी मुसलमान बनाने के लिए ही किया गया हो। दुर्भाग्य है कि आज तक किसी दारूल उलुम, ऊलेमा, इमाम आदि ने न इस विषय पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है न फतवे से मार्गदर्शन। हमारे-आपके पास एक विकल्प है, पूर्ण इस्लामी कानून या सबके लिए समान नागरिक कानून। मानव व मुसलमान के लिए अलग-अलग व्यवस्था क्यों और कब तक?
देवेन्द्र बाथम, दतिया