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रतनगढ़ माता पर लगा मेला, लाखों श्रद्धालु पहुंचे मां के दरबार

दतिया । चल पर्वत की घनी बादियों एवं ऊंचे पहाड़ पर स्थित रतनगढ़ माता मंदिर पर हर वर्ष की तरह इस बार भी मेले का आयोजन हुआ। गत वर्ष की तुलना में यहां आधी ही पब्लिक आई बावजूद इसके मेले में रौनक बरकरार रही। चप्पे चप्पे पर मौजूद पुलिस एवं छह पार्किंग प्वाइंटों से जूझते वाहन चालक पहली बार यातायात को लेकर गंभीरता का प्रमाण बने। इस दौरान पैदल यात्रा करते बूड़े और बच्चे काफी परेशान रहे। एक तरफ लोगों को 9 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ा। मेले में आने वाले वाहनों को भगुवापुरा के रास्ते से प्रवेश दिया गया और भगुवापुरा से महज एक किलोमीटर की दूरी पर बने पहले पाकिंग प्वाइंट पर रोक दिया गया। शुक्रवार मध्य रात्रि से बढ़़े दबाब के कारण मरसेनी पर ही वाहन रोका जाने लगा। सूत्रों के अनुसार शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हुए त्रिदिवसीय मेले में तीन लाख से अधिक श्रद्धालु पहुंचे जबकि प्रतिवर्ष 5 लाख से अधिक दर्शनार्थी मंदिर पहुंचते हैं।
सबने देखा चमत्कार
विज्ञान की हदें समाप्त करते कई चमत्कार लोगों ने देखे। एक हजार से अधिक महिलाएं एवं लगभग पांच सौ पुरुषों को बेहोशी एवं मुंह से गिरते झाग के बीच लोगों ने स्वस्थ होते देखा। वहीं सैकड़ों ऐसे लोग भी रहे जिनके पशुओं को भी बंध लगा था और वह पशुओं के बांधने वाले रस्से को लेकर मंदिर पहुंचे जिसमें नदी पर स्वत: गठान लगी और परिक्रमा के बाद वह खुद ही खुल गई।
दुरुस्त रही व्यवस्था
मेले में एक हजार से अधिक पुलिस बल की उपस्थिति एवं एक सैकड़ा से अधिक अधिकारियों की मौजूदगी रही। जिसके चलते कड़ी प्रशासनिक व्यवस्था को अंजाम दिया गया। रतनगढ़ पुल को अप एवं डाउन जोन में विभाजित किया गया। वाहनों के आने एवं जाने वाले मार्गों को भी एक दूसरे से अलग रखा गया। इसके अलावा एक ओर से सीडिय़ों का उपयोग श्रद्धालुओं के लौटने के रूप में किया गया। मंदिर परिसर में लोगों को न रुकने देना रास्ते में सीसीटीवी कैमरों के माध्यम से लोगों पर नजर रखना एवं एक सैकड़ा से अधिक महिला पुलिस का उपस्थित रहना पहली बार हुआ। इसके चलते मेला बगैर किसी बाधा के सम्पन्न हो गया।
पैदल यात्रा बनी समस्या
मंदिर की ओर जाने वाले बड़े वाहनों को पार्किंग नंबर 1 पर रोका गया। इसकी दूरी मंदिर से 9 किलोमीटर रही। नतीजा यह हुआ कि हजारों लोग इस पैदल यात्रा से परेशान होकर या तो वापस चले गए या फिर दिन भर रुक रुक कर सफर तय किया। इस दौरान उम्रदराज लोग, महिलाएं यह कहते देखे गए कि फिर कभी इस मेले में नहीं आएंगे। पाकिँग की इसी व्यवस्था के चलते दतिया एवं भिंड जिले से लोग काफी कम पहुंचे और संख्या में गिरावट नजर आई।
नदी में किए स्नान
चप्पे चप्पे पर पुलिस की तैनाती के बावजूद लोग पुल के नीचे नदी पर नहाने के लिए उतरे। नदी के किनारे सीडिय़ों से चल कर भी बड़ी संख्या में लोग मंदिर तक गए। हालांकि पुलिस द्वारा मोटर बोट डाली गई थी जिसका उद्धेश्य किसी भी प्रकार की समस्या से निपटना था। नदी के आसपास देर रात तक भीड़ जमा बनी रही।
पैंढ़ भरकर आए श्रद्धालु
दुर्गम रास्ते पर जहां लोगों का पैदल चलना भी दूभर हो रहा था वहां हजारों लोग जमीन में लेटते हुए यानि पैंढ़ भरते हुए मंदिर तक पहुंचे। इसके अलावा मुंह में सांग पिरोए कई लोग एवं जबारों पर नृत्य करते भक्त आकर्षण का केंद्र रहे।
श्रद्धालु ले गए मंदिर की लकड़ी
मान्यता है कि यहां की लकड़ी घर में रखने मात्र से सर्प सहित किसी भी जहरीले जीव का घर में प्रवेश नहीं रहता। इसी मान्यता के चलते हजारों लोग मंदिर की लकड़ी घर ले गए। वन विभाग के अधिकारी कर्मचारियों की उपस्थिती में यह सिलसिला दिन भर जारी रहा। इस दौरान पुरानी झाड़ झंकर के अलावा लोग नई और हरी लकडिय़ां भी काट कर ले गए।
स्ट्रेचरों की व्यवस्था रही सराहनीय
अब तक सर्पदंश पीडि़त व्यक्ति को जैसे ही महर आता था तो उसके परिजन कंधे के सहारे लेटा कर उसे मंदिर तक ले जाते थे। यहां माता एवं कुंअर बाबा के नाम झाड़ लगाते ही व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है। पहली बार प्रशासन ने स्ट्रेचर की व्यवस्था की थी। शिक्षा विभाग द्वारा इस कार्य के लिए शिक्षकों की व्यवस्था की थी। इसके तहत जैसे ही कोई महर का रोगी जमीन में गिरता ड्यूटी पर तैनात शिक्षक उसे स्ट्रेचर पर लेटाते और फिर रोगी के परिजन आसानी से उसे मंदिर तक पहुंचा देते।

Updated : 26 Oct 2014 12:00 AM GMT
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