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ज्योतिर्गमय

कण-कण में बसी चेतना


अलग-अलग दिखते हुए भी हम चेतना के धरातल पर एक-दूसरे से जुड़े हैं. मनुष्य में जो चैतन्य सत्ता हलचल कर रही है, वही सम्पूर्ण जगत एवं प्राणी पदार्थ में विद्यमान है।
महान पुरुषों ने इसे ही व्यक्त करते हुए कहा है कि ब्रह्मांड और पिंड में, व्यष्टि एवं समष्टि में जितनी शक्तियां काम कर रही हैं, वह सभी प्राण चेतना के ही भिन्न-भिन्न रूप हैं। कल्प के आदि से ही अपने मूल रूप महाप्राण से उद्भूत होकर यह सत्ता अंतत: उसी में समाहित हो जाती है।
समत्व एवं एकत्व का दृष्टिकोण अपनाकर चलने और विचारणा, भावना तथा संवेदना को उच्चस्तरीय बना लेने पर नियंता की अनुभूति हर किसी को हो सकती है। पूर्णता के स्तर तक का विकास तभी संभव है।
हमारी चिंतन चेतना जैसी होती है, उसी रूप में वह इस चेतना के समुद्र में संचारित हो जाती है, पर इसे ग्रहण करना पूर्णत: ग्रहीता पर निर्भर करता है। चिंतन-चेतना जिस स्तर की होती है, वह उसी ओर आकषिर्त होती है। उत्कृष्ट स्तर की चेतना सदा सजातीय की ओर खिंचती चली आती है, जबकि निकृष्ट चेतना निकृष्टतम की ओर प्रवाहित होती है।
महर्षि अरविन्द ने भी चेतना को उच्चतर मन, प्रकाशित मन, संबुद्धि मन और ओवर माइंड चेतना के उच्चतर आयाम को सुपर माइंड कहा है। उनके अनुसार चेतना के इस सर्वोच्च स्तर का सम्पूर्ण मानव जाति में अवतरण तभी हो सकेगा, जब वह अपने गुण कर्म स्वभाव में परिष्कार लाकर विचारणा भावना और संवेदना को उच्चस्तरीय बना सके।
साथ ही ईश्वर के प्रति श्रद्धाभाव रखते हुए पूर्णरूपेण आत्म समर्पण कर दे। हम जो चिंतन करते हैं, वही इच्छा आकांक्षा के रूप में शब्द शक्ति बनकर निकलता है। विज्ञान ने शब्द को शक्ति के रूप में स्वीकारा है। उसके अनुसार शक्ति का न नाश होता है, न निर्माण, वरन रूपांतरण होता है। इस आधार पर वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में अब तक छोड़े गये विचारों को विशेष क्षेत्र 'आइडियोस्फीयर नाम दिया है। इस क्षेत्र में घूमने-फिरने वाली विचार चेतना में से वैज्ञानिक उन तरंगों को ग्रहण करने का प्रयास कर रहे हैं, जो वर्षो पूर्व निकली थीं. चेतन शक्ति कण-कण में बसी है, इसलिए इस विश्व ब्रह्मांड में नियम और व्यवस्थाएं चल रही हैं।
यदि नहीं होते, तो सर्वत्र अव्यवस्था के दर्शन होते। सूर्य-चन्द्र, ग्रह-नक्षत्र में से कोई भी समय के पाबंद न होते। पेड़-पौधों में असमय फल-फूल लगते और उनमें किस्म और प्रजाति का कोई भेदभाव न होता। जंतुओं में भी ऐसी ही अनियमितता और अव्यवस्था देखने को मिलती।

Updated : 17 Jan 2014 12:00 AM GMT
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