जनमानस
एक आत्मीय पत्र '' मामाजी को
अपने-अपनी पार्टी की प्रदेश में तीसरी बार जीत दर्ज करा कर हैट्रिक बनाई इसके लिए आप निश्चित ही धन्यवाद के पात्र हैं। आपकी यह अभूतपूर्व जीत कोई साधारण जीत नहीं है। इस जीत में प्रदेश के प्रति आपकी ईमानदारी और सच्ची आस्था समाहित है। एक ओर जहां आपने म.प्र. में बेटी बचाओ अभियान चला कर जिस तरह स्वयं को एक मामा होने की भूमिका को सफलता प्रदान की वहीं दूसरी ओर आपने बुजुर्गों को तीर्थ यात्रा कराकर एक वास्तविक सुपुत्र होने का भी सफल इतिहास रचा है। मुझे आप पर गर्व है तथा आपके राजनीतिक भविष्य की सुखद कामना करते हुए आपका अभिनन्दन करती हूं। इस प्रदेश की बेटी होने के नाते मैं हृदय से आपको मामा स्वीकार करती हूं। अगर आप प्रदेश में अपनी भांजियों के लिए इतने समर्पित हैं तो मैं भी सफल भांजी होने का कर्तव्य निभाते हुए कुछ सुझाव अपने आदरणीय मामाजी समक्ष को प्रस्तुत कर रही हूं।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की अप्रत्याशित जीत ने पूरे देश की राजनीतिक पार्टियों का समीकरण ही बदल कर रख दिया है। अत: प्रदेश के वर्तमान राजनीतिक स्तर पर काफी गंभीरता की आवश्यकता है, आज प्रदेश के मध्यम और निम्न वर्ग के लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं को विशेष प्राथमिकता देनी होगी। मात्र छह माह के प्रयास में दिल्ली के मुख्यमंत्री ने पानी और बिजली के मामले में वहां के लोगों का जिस तरह दिल जीता है, इसका प्रभाव पूरे देश के साथ-साथ हमारे प्रदेश पर भी पड़ा है।
हमें यह कदापि नहीं भूलना चाहिए कि हाल ही में हुए यहां विधानसभा चुनाव में पांच लाख से अधिक नोटा के बटन दबाए गए थे। राजनीति में कब क्या होगा इसे नकारा नहीं जा सकता। प्रदेश मेंं भी आम आदमी पार्टी जिस तरह अपनी आमद दर्ज करा रही है, इसके संज्ञान में किसी भी तरह की कोताही घातक साबित हो सकती है। यह स्पष्ट है कि, मान मनौव्वल का समय जाता रहा है आज अपने इस प्रदेश हमारे समर्पण के बजाय हमारे पूर्ण समर्पण की आवश्यकता है। समय रहते चेतने की जरूरत है।
हमें प्रदेश की प्रत्येक छोटी-बड़ी समस्याओं को चुन-चुन कर नए तरह से परिभाषित करना होगा और इसे ईमानदारी से दूर करना होगा। अभी पिछले दिनों शहर के एक अखबार में पढऩे को मिला कि मंत्री बनते ही भ्रष्ट अधिकारियों पर कार्रवाई शुरु हुई पढ़ कर अच्छा लगा लेकिन आश्चर्य भी हुआ कि यह कार्रवाई सिर्फ अफसरों पर ही क्यों भ्रष्ट नेताओं पर क्यों नहीं। एक अधिकारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भ्रष्टाचार तभी कर सकता है, जब उसका आका उस पर मेहरबान होता है। एक ओर ऐसे नेता जो हजारों बीधा सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा कर नाग की भांति उस पर कुण्डली मारे बैठे हैं। वहीं दूसरी ओर लाखों की संख्या में लोगों के सिर पर छत भी नसीब नहीं है। अगर इन्हें आवास मुहैया कराने की कोई योजना बनाई भी जाती है तो अधिकांश आवास रसूखदार व्यवस्थापकों या नेताओं के समीपस्थ लोगों के पाले में ही जाता है, सरकारी नौकरियों का मामला भी इससे अलग नहीं है।
भले ही हमारी प्रदेश सरकार ने विकास के कर्ई कार्यक्रम आगे बढ़ाने में सफलता पाई हो, लेकिन आज भी प्रदेश के रोटी, कपड़ा और मकान के भयावह स्वरूप को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। प्रदेश की इन समस्याओं का निराकरण क्या किसी पवित्र तीर्थ के स्नान से कम है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरे इस पत्र पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
प्रियंका ग्वालियर