अग्रलेख

संबंधों को परिभाषित तो कीजिए

  • डॉ. रहीस सिंह


पाकिस्तान के जन्म के समय से ही भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते कुछ इस तरह के रहे हैं, जिन्हें वास्तव में सही तरीके से परिभाषित नहीं किया गया। शायद यही वजह है कि अभी तक दोनों देशों के सम्बंधों की दिशा भी तय नहीं हो पायी। तो क्या अब यह जरूरी नहीं हो जाता कि पहले भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को परिभाषित किया जाए और यह तय हो कि उन्हें किस खांचे में रखा जाए ? इसके बाद उन्हें आगे बढ़ाने की राह तलाशी जाए। लेकिन क्या भारतीय नेतृत्व वास्तव में यह चाहता है कि पहले वह स्पष्ट करे कि पाकिस्तान के साथ उसका रिश्ता कैसा है, अर्थात शत्रुता का या फिर मित्रता का अथवा दो सामान्य देशों जैसा? जहां तक पाकिस्तान की बात है तो उसकी सेना भारत को दुश्मन नम्बर एक मानती है और उसके चरमपंथी भारत को सनातन शत्रु। इसलिए पाकिस्तान का पक्ष तो स्पष्ट है लेकिन भारत का अस्पष्ट। इस वास्तविकता को जानने के बावजूद भी क्या यह उम्मीद की जानी चाहिए कि दोनों देशों के बीच बातचीत किसी सार्थक दिशा में जाएगी ?
इधर पाकिस्तानी सेना की हरकतों और उसकी सरकार के व्यवहार को लेकर दो तरह की खबरें लगातार आ रही हैं। एक यह कि पाकिस्तान की सेना लगातार संघर्ष विराम का उल्लंघन कर रही है और दूसरी तरफ पाकिस्तान की सरकार भारत से बातचीत की अपनी कथित अपेक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण कर रही है। जबकि भारत सरकार अनिर्णय व भावनात्मक दोहन की शिकार हो रही है। पाकिस्तानी सेना जिस तरह से लगातार गोलाबारी कर रही है उसे देखते हुए कुछ वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों का कहना है कि वर्ष 2003 का भारत-पाकिस्तान संघर्ष विराम अब निर्रथक हो गया है क्योंकि पुंछ और राजौरी सेक्टर में 225 किलोमीटर लंबी नियंत्रण रेखा पर 10 अगस्त से प्रतिदिन गोलीबारी हो रही है। अकेले अगस्त महीने में ही अब तक पाकिस्तान सेना द्वारा 28 से अधिक बार संघर्ष विराम का उल्लंघन किया जा चुका है जबकि जनवरी से अब तक 80 से अधिक बार। इसके बाद भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह चाहते हैं कि वे सितम्बर में न्यूयॉर्क में नवाज शरीफ से मुलाकात करें। भारतीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन वाशिंगटन में अमेरिकी अधिकारियों के समक्ष इस बात का खुलासा भी कर चुके हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि अमेरिका भी यही चाहता है। लेकिन क्या प्रधानमंत्री को न्यूयॉर्क में नवाज से बात करनी चाहिए ? विशेषकर उस स्थिति में जब नवाज शरीफ की सेना ही उन्हें बौना बना रही हो।
पिछले दिनों अमेरिकी थिंक टैंक 'द हैरिटेज फाउंडेशन की लीजा कर्टिस ने अपने एक बयान में कहा कि 'ऐसा संभव है कि पाकिस्तानी सेना जान बूझकर भारत के साथ तनाव बढ़ा रही हो ताकि नवाज सरकार को दिखा सके कि वह भारत-पाकिस्तान सम्बंधों को नियंत्रित कर सकती है। भारत-पाकिस्तान सीमा पर पाकिस्तानी सेना द्वारा लगातार संघर्ष विराम का उल्लंघन सम्भवत: नवाज को यह चेतावनी दे रही है कि पिछली सदी के अंतिम दशक की गलती को न दोहराएं। इसका मतलब तो यही हुआ कि भारत और पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता में खलल डालना मौजूदा संघर्ष विराम उल्लंघन का मुख्य उद्देश्य है। क्या पाकिस्तान की सेना अपनी इन हरकतों के जरिए यह दिखाना चाहती है कि असली बॉस कौन है। वास्तव में पाकिस्तान में सेना 'डि फैक्टो शासक है जबकि नवाज शरीफ औपचारिक। ऐसी स्थिति में भारतीय नेतृत्व को यह तय करना होगा कि क्या वास्तव में नवाज शरीर्फ के साथ वार्ता का कोई नतीजा निकल पाएगा ?
भारतीय नेतृत्व का प्रमुख धड़ा, जिसमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी शामिल हैं, पता नहीं क्यों इस बात को गम्भीरता से लेता है कि पाकिस्तान भी आतंकवाद से ग्रस्त है इसलिए भारत को उसके साथ सहयोगात्मक और सहानुभूतिपरक व्यवहार करना चाहिए। भारत का एक वर्ग यह भी मान लेता है कि चूंकि पाकिस्तान स्वयं आतंकवाद से त्रस्त है, इसलिए अब वह आतंकवाद नहीं चाहता। यही नहीं हमारी सरकार तो यह भी बताने में परहेज नहीं करती कि पाकिस्तानी फौज और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई सरकार के साथ मिलकर आतंकवाद के विरुद्ध अभियान चला रहे हैं। सबसे पहली बात तो यह है कि यदि पाकिस्तान आतंकवाद से त्रस्त है तो उसके लिए भारत जिम्मेदार नहीं है बल्कि इसके लिए पाकिस्तान स्वयं जिम्मेदार है। जबकि भारत की स्थिति भिन्न है क्योंकि वह पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से पीडि़त है। दूसरी बात यह कि पाकिस्तान अभी भी उन आतंकी समूहों का आर्थिक पोषण कर रहा है जो पाकिस्तान में बैठकर भारत विरोधी गतिविधियां चला रहे हैं। अभी भी वहां की प्रांतीय व संघीय सरकार द्वारा चरमपंथी संगठनों के लिए आर्थिक सम्बंधी बजट पारित कराए जाते हैं। यही नहीं वहां पर ऐसा साहित्य भी पढ़वाया जा रहा है जिससे उसके युवा वर्ग में भारत के खिलाफ नफरत पनपे। हाल की खबरों से पता चलता है कि पाकिस्तान के खैबर
पख्तूनखा प्रांत की तहरीक ए इंसाफ व जमात-ए-इस्लामी पार्टी की गठबंधन सरकार अब वहां जिहादी साहित्य पढ़वाने की तैयारी कर रही है। यह भारत विरोधी और जिहादी साहित्य पाकिस्तान में न सिर्फ प्रकाशित हो रहा है, बल्कि आसानी से उपलब्ध भी है। इसे कोई भी हासिल कर सकता है। उदाहरण के तौर पर खैबर पख्तूनखा प्रांत के शहर पेशावर में ज्यादातर स्टॉलों पर पत्र-पत्रिकाओं के अलावा प्रतिबंधित जिहादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का मासिक अखबार अल-कलम और अफगान जिहाद से जुड़ी 'शरियत जैसी पत्रिकाएं खुलेआम बिकती देखी जा सकती हैं। इन पत्रिकाओं के जरिए धड़ल्ले से जिहादी विचारधारा फैलाई जा रही है। इसे जानने के बाद एक सीधा सा प्रश्न यह उठता है कि यदि कोई देश भारत के खिलाफ नफरत बढ़ाने वाले साहित्य को प्रसारित और प्रोत्साहित कर रहा है, क्या वह वास्तव में चाहता है कि भारत के साथ उसके मैत्री सम्बंध कायम हों ? क्या इससे पाकिस्तान के एक बड़े वर्ग की उस मनोदशा का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता जो भारत विरोधी है? यदि ऐसा है तो फिर वह कौन सी वजह है जो भारत को पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिए विवश करती है ?
पाकिस्तान की प्रकृति और भू-राजनीतिक स्थिति भारत से सजग और रणनीतिक होने की अपेक्षा करती है केवल वार्ता के प्रति प्रतिबद्धता की नहीं। भारत को 2014 के बाद की आने वाली स्थितियों का आकलन पहले ही कर लेना चाहिए क्योंकि अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की विदाई के बाद सम्भव है कि वह तालिबानों का प्रयोग भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर करने का प्रयास करेगा। पाकिस्तान लगातार भारत की शांति भंग करने का प्रयास इसीलिए कर रहा है ताकि भारत अपनी अफगान नीति को व्यवहारिक रूप न दे सके। इसलिए भारतीय नेतृत्व को चाहिए कि पहले आदर्शों की केंचुल उतारे, वास्तविकता को पहचाने फिर जरूरी हो तो बातचीत करे। बहरहाल हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अकबर खान से लेकर कयानी तक पाकिस्तानी सेना ने भारत के खिलाफ लगातार परम्परागत युद्ध से लेकर छद्मयुद्ध तक लड़ा। अकबर खान के इशारे पर कश्मीर में कबाइली हमला, आईएसआई प्रमुख ब्रिगेडियर रियाज के नेतृत्व में 1965 का ऑपरेशन जिब्राल्टर, इसी समय जनरल अयूब खान और जुल्फिकार अली भुट्टो के दिमाग का कुचक्र ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम, 1989 में आईएसआई की बीयर ट्रैप की नीति के तहत जम्मू-कश्मीर में छाया युद्ध की शुरूआत, करगिल घुसपैठ तत्पश्चात उन्हें खदेडऩे के लिए हुआ युद्ध, संसद पर हमला, 26/11...आदि इतनी कारस्तानियों के बाद ऐसे प्रमाण ढूंढने की जरूरत तो भारत को नहीं पडऩी चाहिए जो पाकिस्तान के चरित्र का खुलासा कर सके।
बहरहाल समाजवादी चिंतक राम मनोहर लोहिया के ये शब्द आज भी प्रासंगिक हैं कि भारत-पाकिस्तान के बीच साधारण मित्रों जैसे सम्बंध नहीं हो सकते, या तो दोनों देश आपस में लड़ते रहेंगे या फिर एक हो जाएंगे। मतलब यह कि पाकिस्तान जैसा देश या तो दुनिया के मानचित्र पर रह ही नहीं जाएगा या फिर वह भारत से टकराव की स्थिति में रहेगा। आज की स्थिति में पाकिस्तान का दुनिया के नक्शे से हटाना तो संभव नहीं है, इसलिए यह मान लेना चाहिए कि पाकिस्तान भारत के खिलाफ युद्ध (चाहे वह प्रत्यक्ष हो या परोक्ष) नहीं बंद करेगा।



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