ज्योतिर्गमय

मृत्यु-भय

मृत्यु भय ही सबसे बड़ा भय है जबकि इंसान जानता है मृत्यु एक अटल सत्य है होनी ही होनी है। सोचना यह चाहिए कि हमने मृत्यु के पहले परिवार, समाज और देश के प्रति अपना कर्तव्य ठीक से निभाया या नहीं। कई लोगों को इतना अवसर ही नहीं मिलता और कई अवसर का लाभ नहीं उठा पाते। समय का सदुपयोग नहीं कर पाते। आखिर मृत्यु भय है क्या? क्यों होता है? हमारी आसक्ति हमें इससे परेशान करती है। परिवार, घर समाज, प्रतिष्ठा का छूट जाने का भय ही हमें मृत्यु भय से परेशान करता है। करोड़ों आए, चले गए सब कुछ यहीं छूट गया। कोई कुछ न ले जा सका फिर भी हम अटके रहते हैं। यह एक बड़ी विडम्बना है। ओशो कहते हैं यदि मृत्यु से डरोगे तो जल्दी मरोगे बल्कि वे कहते हैं मृत्यु का मरने का रोज अभ्यास करो तो मृत्यु का भय जाता रहेगा। आदमी को इस निडरता से जीना चाहिए कि जब ईश्वर को हमारी जरूरत है वह हमें ले जाए। एक कहावत है, एक बार यमराज ने अपने दूतों से कहा कि जाओ महामारी फैला दो और सौ लोगों को मारकर ले आओ। कुछ समय बाद दूतों ने वहां दस हजार लाश इक कर दी तो यमराज ने कहा कि मैंने तुम्हें सिर्फ सौ लोगों के लिए कहा था। तुम लोगों ने दस हजार लोगों को मार दिया तो दूतों ने कहा कि हम सिर्फ सौ आदमी ही चाहते थे उनमें ही बीमारी फैलाई थी पर बाकी तो मृत्यु भय के कारण मर गए। ऐसा होता है मृत्यु भय। मृत्यु को हम जानते नहीं फिर भी डरते हैं। अनजान से डर कैसा। डर ज्ञात से होना चाहिए अज्ञात से क्यों? एक बार एक जापानी नागरिक प्रसिद्ध दार्शनिक लाओत्से के पास गया और कहने लगा कि मुझे मृत्यु का रहस्य बताइए तो दार्शनिक ने कहा मृत्यु कोई रहस्य नहीं है। बस मृत्यु है तुम जीवन के रहस्य को जानो लोगों को जीना सिखाओ। लोगों की मदद करो उनके मन से मृत्यु के भय को निकाल फेंको। जीवन की समस्याओं के समाधान ढूंढो। अपनी शक्ति जीवन को अच्छे ढंग से जीने में लगाओ। जीवित मनुष्यों की समस्याओं को दूर करो समाधान खोजो फिर मृत्यु कोई रहस्य नहीं रह जाएगी। मृत्यु भय से मुक्त हो जाओ और लोगों को भय से मुक्त करो। भगवान कृष्ण तो कहते हैं कि सभी भयों से मुक्त होना ही सही जीवन जीने की कला है। भय ने किसी का भला नहीं किया। मन में प्रश्न उठता है कि ईश्वर ने ऐसे भावों को जन्म ही क्यों दिया। सिर्फ सकारात्मक विचारों को ही जन्म देता तो दुनिया कुछ और होती, लेकिन सब मीठा ही मीठा रहता तो उसे कौन याद करता। तो उसकी रचना वही जाने। उस पर हमारा प्रश्न अनुचित है। मैं और मेरा ही भय की उत्पत्ति कराते हैं। यही तो कहा है कि अनासक्त और वैराग्य भाव से जियो। कुछ भी अपना मत समझो। जो जितना मिला है उसके लिए कृतज्ञता जताओ। इसीलिए कहते हैं- चाह गई चिन्ता गई मनुआ बेपरवाह, जिसको कुछ न चाहिए वो है शहंशाह। क्या ऐसा जीवन जीना संभव है। संभव है बस कोशिश करनी पड़ती है। मन में बैठे राग द्वेष को निकालो इच्छाओं पर नियंत्रण करो और सीधी सरल जिंदगी जिओ। बस यही मेरा संदेश है।

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