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ज्योतिर्गमय

श्रवण से ज्यादा मनन जरुरी


आप घर में सफाई करते हो, झाड़ू लगाते हो, सब साफ-सुथरा कर देते हो। किन्तु थोड़ी देर के बाद फिर धूल आ जाती है।
आप सुबह भोजन करते हैं, उसके तीन-चार घंटे बाद फिर भोजन करते हैं, फिर शाम को भोजन करते हैं किन्तु आप यह तो नहीं कहते कि अरे, सुबह खाया था, कल भी खाया, फिर आज भूख क्यों लग रही है। या कल ही तो घर साफ किया था, आज फिर धूल जम गई! लेकिन इस कारण आप भोजन करना या सफाई करना तो बंद नहीं कर देते?
आप यह भी नहीं सोचते कि धूल तो रोज जमती या आती ही है, अत: सफाई का क्या फायदा या भूख भी रोज लगती है तो अभी खाने से क्या फायदा! एक बात आपके अनुभव में जरूर आई होगी कि आपने जो भी ध्यान वगैरह किया, सत्संग किया, उसका असर आप पर थोड़ी देर के लिए रहा। फिर आप अपनी रोज की दिनचर्या में वापस आ गए, किन्तु जो आप पहले थे, वह नहीं रहे।
सत्संग के समय उस जोश में ऐसा लगता है कि अब तो हम मंजिल तक पहुंच गए हैं। आगे कुछ करने की जरूरत नहीं है। पर सत्संग का अर्थ यह नहीं है कि आप सिर्फ यहां आकर बैठ गए और कुछ सुन लिया और फिर चले गए। इससे काम नहीं चलेगा। आप जब रोटी बनाते हैं तब उसमें थोड़ा सा नमक डालते हैं तो यह जो श्रवण है, इसकी मात्रा भी रोटी में नमक के बराबर होनी चाहिए और उसमें आटे की मात्रा का मनन होना चाहिए। बिना मनन किये ज्यादा सुनने से कोई लाभ नहीं होता। किन्तु आप आटे की मात्रा के बराबर नमक (श्रवण) और नमक की मात्रा के बराबर आटा (मनन) डाल देते हैं तो फिर रोटी कैसे बनेगी?
तब मनन कैसे होगा? उसके लिए थोड़ा प्राणायाम करो। यदि किसी ने कहा कि प्राण के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए, तब वह इस ज्ञान को जानते ही नहीं हैं। जो रोटी बनाना नहीं जानता हो वह तो कहेगा, रोटी मत बनाओ, यह तुमसे नहीं होगा। आप यदि मद्रास जाकर किसी को कहें कि 'मकई की रोटी और सरसों का साग बनाओ तो वह कहेंगा, यह क्या होता है? यहां तो डोसा और इडली से काम चलाओ, किन्तु जिसे इसका ज्ञान है, वह उसे वहां भी बना सकते हैं।

Updated : 17 Sep 2013 12:00 AM GMT
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