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जनमानस

सौन्दर्यीकरण या विध्वंस?

न्यायालय के आदेश के बाद शहर को सुन्दर बनाने की मुहिम प्रारंभ हो गई है। इस मुहिम के चलते शहर में अनेक स्थानों पर, नगर निगम व जिला प्रशासन का बुलडोजर अपना काम करने में लगा है। सौन्दर्यीकरण के नाम पर शहर में विध्वंस होता दिखाई दे रहा है, क्या इस प्रकार का सौन्दर्य, शहर में कितना निखार लाएगा यह तो समय ही बताएगा, किन्तु यह सत्य है कि आज जो कुछ शहर में हो रहा है उसके परिणाम दूरगामी होंगे। क्या जो कुछ आज शहर में हो रहा है उसके लिए दीर्घकालिक नीति तैयार नहीं की जा सकती थी? आज सौन्दर्य व अतिक्रमण को हटाने के नाम पर अनेक परिवारों की रोजी-रोटी छिन रही है, अनेक परिवार बेघरवार हो रहे हैं। शहर में बने अनेक धार्मिक स्थानों का विध्वंस कर नगर निगम प्रशासन अपनी कौनसी वचन बद्धता निभा रहा है? शहर का साधु-संत समाज, धार्मिक स्थलों को तोडऩे के कारण क्षुब्ध व दु:खी है, अतिक्रमण को हटाने के नाम पर प्रशासन संवेदनशील नहीं रहा, आज चलने वाली मुहिम आगे आने वाले समय में रुकेगी जरूर, तब जो लोग इस अतिक्रमण के तोडऩे के दायरे में नहीं आएंगे। उनके साथ प्रभावित परिवारों के साथ दुर्भावना पैदा हो सकती है। क्या यह स्थिति वर्ग संघर्ष को बढ़ावा नहीं देगी? क्या अतिक्रमण के लिए आम जनता, व्यापारी, दुकानदार ही जिम्मेदार हैं व नगर निगम प्रशासन जिसने अवैध निर्माण को मौन मंजूरी दी, क्या वह जवाबदार नहीं है। राजनैतिक दबाव व भ्रष्टाचार के चलते ऐसे अतिक्रमणों को मौन स्वीकृति आखिर किसने दी, कौन लोग जिम्मेदार हैं? उन तत्वों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाना चाहिए। प्रभावित परिवारों को पर्याप्त मुआवजा व उनके पर्याप्त पुर्नवास की व्यवस्था भी की जाना चाहिए तथा भविष्य में इस प्रकार का अतिक्रमण पुन: न होने पाए इसका विशेष ध्यान रखने की भी अवश्यकता है। शहर में बन रहे मलबे के ढेरों का उचित व्यवस्थापन भी शीघ्र किए जाने की आवश्यकता है।

संजय जोशी, ग्वालियर

Updated : 10 Sep 2013 12:00 AM GMT
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