इशरत जहां मामला: पांडेय की जमानत याचिका खारिज

अहमदाबाद | सीबीआई की एक विशेष अदालत ने अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक पीपी पांडेय की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी, जिससे 2004 में इशरत जहां और तीन अन्य के फर्जी मुठभेड़ में मारे जाने के मामले में उनकी गिरफ्तारी का मार्ग प्रशस्त हो गया है।
विशेष सीबीआई न्यायाधीश गीता गोपी ने पांडेय द्वारा अग्रिम जमानत के लिए दायर अनुरोध खारिज कर दिया, जो मुठभेड़ मामले में अपना नाम आने के बाद पिछले कुछ महीनों से भूमिगत थे। अदालत ने इस पर उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया था।
विशेष अदालत गुजरात उच्च न्यायालय के निर्देश पर पांडेय के आवेदन पर नए सिरे से विचार कर रही थी। उच्च न्यायालय ने 6 अगस्त तक के लिए वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी।
पंद्रह जून 2004 को जिस समय इशरत, उसका मित्र जावेद शेख उर्फ प्रणेश पिल्लै और उनके साथी अमजद अली राणा तथा जीशान जौहर को शहर के बाहरी इलाके में अपराध शाखा के कर्मियों ने मार गिराया था, उस समय 1982 बैच के आईपीएस अधिकारी पांडेय संयुक्तायुक्त पुलिस (अपराध) थे। सीबीआई ने मामले में पिछले महीने दायर आरोपपत्र में पांडेय सहित गुजरात पुलिस के सात अधिकारियों का नाम लिया थ। आरोपपत्र में मुठभेड़ को फर्जी बताया गया था और कहा गया था कि यह गुजरात पुलिस तथा खुफिया ब्यूरो का संयुक्त अभियान था।
इसके पूर्व पांडेय के वकील निरूपम नानावती ने दलील दी थी कि सीबीआई पांडेय का पीछा कर रही है और किसी भी तरह उन्हें सलाखों के पीछे भेजना चाहती है।
नानावती ने कहा था कि सीबीआई द्वारा उनके मुवक्किल को भगोड़ा कहना पूरी तरह अवैध है क्योंकि पांडेय उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुरूप संबंधित अदालत के समक्ष पेश हुए। उन्होंने कहा था कि सीबीआई न सिर्फ मेरे मुवक्किल (अकेले) को अपमानित करना चाहती है, बल्कि गुजरात के सभी पुलिस अधिकारियों को अपमानित करना चाहती है। यह तर्क देते हुए कि पांडेय के खिलाफ कोई सामग्री नहीं है, नानावती ने कहा कि वह गुप्तचर ब्यूरो से मिली सूचना पर काम कर रहे थे और यदि सूचना पर सवाल उठते हैं तो देश में कानून और व्यवस्था से संबंधित गंभीर समस्या पैदा हो सकती है। हालांकि, सीबीआई के वकील एजाज खान ने यह कहकर आरोपों का खंडन किया कि जांच एजेंसी ने इस मामले को केवल गुजरात उच्च न्यायालय के निर्देश पर अपने हाथ में लिया था।