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जनमानस

ईमानदारी की सजा

कार्यपालिका के प्रमुख रूप से दो अंग है। प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्री। दूसरा है अधिकारी-कर्मचारी। स्थापित नियमों के अनुसार शासन के संचालन का दायित्व इन पर रहता है। निर्देश मंत्रालय देता है और उसका क्रियान्वयन अधिकारी करते है। कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी कलेक्टर और एस.पी. की रहती है। ये अधिकारी आई.ए.एस. और आई.पी.एस. होते है, इनको नियमों के अनुसार काम करने की शपथ दिलाई जाती है। यह शपथ उन्हें राजनेताओं की मर्जी के खिलाफ नियमानुसार काम करने की अनुमति देती है। इस प्रशासकीय व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित कर विचार करे कि उत्तरप्रदेश के नोएडा में अवैध खनन को रोकने में ईमानदार आई.ए.एस. अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल को निलंबित कर दिया। इसका कारण मुख्यमंत्री अखिलेश यह बता रहे है कि उनकी कार्रवाई से वहां की एक मस्जिद की दीवार हटाने का मामला है। इससे साम्प्रदायिक सद्भाव बिगडऩे का अंदेशा था। नियमों के अनुसार शासकीय भूमि पर धार्मिक निर्माण कार्य नहीं हो सकते। यदि नियमानुसार दुर्गा शक्ति ने कार्रवाई की है तो फिर निलंबन क्यों? क्या प्रशासकीय अधिकारियों को भी राजनैतिक एजेंडे के अनुसार काम करना होगा। जो थोड़े बहुत ईमानदार अधिकारी है यदि वे भी प्रताडि़त किए गए तो फिर प्रशासकीय ढांचा भी राजनेताओं की कठपुतली बनकर एक ऐसा गिरोह बन जाएगा, जो देश की शासन व्यवस्था को भी बर्बाद कर देगा, फिर कानून के शासन का आधार ही खत्म हो जाएगा।

हरिओम शर्मा, इंदौर

Updated : 3 Aug 2013 12:00 AM GMT
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