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ज्योतिर्गमय

जीवन एक संगम, एक संयोग, एक सुयोग

संगम कहते हैं दो या तीन नदियों के मिलन स्थल को। जैसे इलाहाबाद में गंगा जमुना का मिलन होता है। ऐसे और भी नदियां मिलती हैं पर संगम नाम एक ही जगह को दिया गया है। यह पौराणिक काल से चला आ रहा है। हमारा देश नदियों, पहाड़ों, रेगिस्तान का देश है। विभिन्न भाषाएं, विभिन्न रीति-रिवाज, पहनावा, भाषाएं याने विविधता ही विविधता है। पर संगम का अपना ही महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि मृत्यु के बाद अस्थि विसर्जन हेतु ज्यादातर लोग यहां जाते हैं। जीवन में संगम शब्द का बहुत महत्व है। दो संस्कृतियों का संगम होता है। परिवार में माता-पिता संतान का संगम होता है। दो परिवारों का भी संगम होता है, जब रिश्ते जुड़ जाते हैं, दो देशों में जब संबंध बनते हैं तो दो सभ्यताओं का संगम होता है। संगम एक संयोग है, एक सुयोग है। इसमें ईश्वर की भूमिका अहम होती है क्योंकि बिना उसकी कृपा के कुछ नहीं होता। आप कहीं यात्रा पर जाते हैं वहां कोई मित्र परिवार के साथ मिल जाता है ट्रेन में तो इसे संयोग ही कहा जा सकता है पर एक अच्छा सुयोग हो जाता है। यात्रा बड़ी सुखद हो जाती है। बातें और खाने-पीने की चीजों का आदान-प्रदान। रास्ता आराम से कट जाता है। आज दुनिया इतनी छोटी हो गई है। अलग-अलग भाषाओं, संस्कृतियों के लोग, धर्म के लोग विवाह बंधन में बंध जाते हैं। संगम, संयोग और सुयोग तीनों होते हैं। इन तीनों शब्दों की जीवन में हर जगह जरूरत पड़ती है। बिना सुयोग संयोग संगम नहीं होता। नदी उद्गम से चलती है, बहती है उससे कौन सी नदी, नाला या जल प्रवाह कहां मिलेगा उसे स्वयं पता नहीं होता। बस प्रकृति ही इन्हें मिलाती है, संगम कराती है। ऐसी कितनी नदियां दूसरी नदियों से मिलती हैं। नया रूप ले लेती हैं और प्रवाह जारी रहता है। काश, इसे हम अपने जीवन में उतार सकते होते कि मिलन कितना अच्छा होता है याने संगम और वियोग दु:खदायी। वियोग का दर्द वही समझ सकता है जिसे इससे गुजरना पड़ा हो। पर जीवन में ऐसे मौके बलात् आ जाते हैं न चाहकर भी वियोग सहना पड़ता है। जीवन संयोग, सुयोग, वियोग का संगम है। प्रकृति तो स्वचालित है उसे ईश्वर संचालित करता है। प्रकृति में कितनी चीजें दी हैं ईश्वर ने। प्रकृति तो अपने आप में एक सौगात है ईश्वर की दुनिया के लोगों पर हम उसे तोड़ते-मरोड़ते हैं, नुकसान पहुंचाते हैं। हवा, पानी का रुख बदल देते हैं और फिर जब उसे क्रोध आता है तो वह बदला लेती है और सब कुछ तहस-नहस कर डालती है। बाढ़, भूकम्प, अग्निकांड, सुनामी और उसकी विभीषिका के सामने आदमी कितना बौना लगता है। तो हमें इसकी कद्र करना चाहिए और हमारे यहां अग्नि, हवा, वर्षा सबकी पूजा होती है। भूमि पूजन होता है यही हमारी संस्कृति की विशिष्टता है। हम सजीव-निर्जीव सभी का सम्मान करते हैं। तो हम अपनी संस्कृति का सम्मान करें बस, यही मेरा संदेश है।

Updated : 29 Aug 2013 12:00 AM GMT
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