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ज्योतिर्गमय

हर पल हर क्षण बदलता रहता है मन

मन कभी स्थिर नहीं रहता। हर पल उसमें उठने वाले विचार बदलते रहते हैं। कभी किसी विषय पर, कभी किसी व्यक्ति पर, कभी किसी परिस्थिति पर, कभी शरीर पर, कभी परिवार पर। पानी जब तक स्थिर नहीं होता अपनी छवि दिखाई नहीं देती। एक बार महात्मा बुद्ध शिष्यों के साथ जंगल से गुजर रहे थे उन्हें प्यास लगी तो उन्होंने एक शिष्य से पास में बहती हुई नदी से पानी लाने के लिए कहा। शिष्य गया और बिना पानी लिए वापस आ गया और कारण बताया कि एक बैलगाड़ी वहां से गुजरी और पानी गंदा हो गया। तो महात्मा बुद्ध ने कहा कि थोड़ी देर प्रतीक्षा करो जब पानी स्थिर हो जाएगा तो साफ हो जाएगा फिर ले आना। उसने वैसा ही किया और पानी ले आया। तब भगवान बुद्ध ने कहा कि हमारा मन भी ऐसा है। जब स्थिर रहता है तब सब कुछ साफ दिखाई देता है और जब अशान्त, अस्थिर रहता है तो फिर बहुत परेशान करता है। शान से परे हो जाता है जो कि नहीं होना चाहिए। एक और बात है, हम हमेशा चाहते हैं कि ऐसा हो ऐसा न हो तो किसी ने कहा कि आपके मन का हो जाए तो अच्छा है और न हो तो और भी अच्छा ही है। तो किसी ने पूछा मन का न हो तो वह ज्यादा अच्छा कैसे होगा तो जवाब मिला कि फिर वह ईश्वर की इच्छा से होता है और वह अच्छा ही करता है। क्या-क्या जुमले बनाए हुए हैं चित्त भी मेरी पट भी मेरी। याने ईश्वर सब कुछ है उस पर छोड़ो और सुखी रहो। वैसे भी कहा है कि इंसान चाहे तो क्या होता है होता वही है जो मंजूरे खुदा होता है। सब कुछ मन ही करता है यदि शांत है तो सब ठीक होगा और यदि अशांत है तो कुछ भी ठीक नहीं होगा। शांति ही सबसे बड़ा सुख है। मन भी आकाश की तरह है जिसमें अपना प्रभाव दिखाते रहते हैं। पर आकाश का कुछ बिगड़ता नहीं ऐसे ही हमें हमारे मन को बनाना चाहिए। हमें आकाश की तरह स्थिर रहना चाहिए। जैसे आकाश सबसे ऊपर है उसका कुछ नहीं बिगाड़ा जा सकता तो हमें भी आकाश बन जाना चाहिए। आंधियां चलती रहेगी, कभी धूप, कभी छांव, कभी बारिश पर आकाश स्थिर रहता है। उसका कुछ नहीं बिगड़ता वह जैसा था वैसा है और वैसा ही रहेगा। हमें अपने अंदर ऐसी ही भव्यता पैदा करनी चाहिए। जब हम अपने आपको आकाश की तरह भव्य बना लेंगे तो बाकी सब चीजें आती जाती रहेंगी और हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा। तो आइए, मन को पल-पल बदलने से रोकें। आकाश बन जाएं सुखी रहेंगे। बस यही मेरा संदेश है।


Updated : 23 Aug 2013 12:00 AM GMT
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