जनमानस
देशद्रोहियों को सरकारी संरक्षण
गृहमंत्री चिदम्बरम ने स्वीकार किया है कि भारत विरोधी नारों से ही किश्तवाड़ में हिंसा भड़की। इस पर उमर अब्दुल्ला ने भी यह माना है कि ऐसे नारे 20-22 साल से लगते रहे हैं, नई बात क्या। यह बड़े शर्म की बात है कि देशद्रोही भारत विरोधी नारे लगाते हैं और मुख्यमंत्री हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं और यह कहते हैं कि ऐसा तो 20-22 साल से हो रहा है। उनके कार्यकाल में भी ऐसा हो रहा है, यह भाषण देकर उन्होंने अपनी अक्षमता का ही प्रदर्शन किया है और ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई न करके सेना हटाने की मांग करना आतंकवादियों के हाथ मजबूत करना ही है। सेना को न बुलाने के लिए फारूख साहब का कहना है कि गुजरात के दंगों के समय भी सेना को नहीं बुलाया गया था। दोनों की तुलना करना उनके ज्ञान का द्योतक है। गुजरात के दंगे सीमापार से पोषित नहीं थे जबकि किश्तवाड़ के दंगे देशद्रोह है। गुजरात के दंगे 3 दिन में नियंत्रित हो गए थे। जबकि किश्तवाड़ के दंगे एक हफ्ते में भी नियंत्रित नहीं हो सके हैं। अपनी असफलता के लिए ऐसे ओछे और घिनौने हथकंडे आज के नेताओं के लिए शोभा नहीं देता है।
लालाराम, गांधीनगर