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ज्योतिर्गमय

भाग्य का निर्माता है मनुष्य

मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता है। निज का उत्थान-पतन उसके बस की बात है। यह तथ्य जितना सच है, उतना ही यह भी सही है कि वातावरण का प्रभाव अपने ऊपर भी पड़ता है और अपने व्यक्तित्व से परिवार एवं समाज का वातावरण भी प्रभावित होता है. बुरे वातावरण में रहकर कदाचित् ही कोई अपनी विशिष्टता बना सका हो। साथ ही, यह भी सच है कि वातावरण का प्रभाव भी पड़े बिना नहीं रहता।
अधिकतर समर्थ लोगों के क्रियाकलाप ही वातावरण बनाते हैं। बहुसंख्यक होने पर और एक प्रकार की गतिविधियां अपना लेने पर दुर्बल स्थिति के लोग भी अपना एक विशेष प्रकार का माहौल बना लेते हैं। व्यसनी, अनाचारियों का समुदाय भी ऐसा प्रभाव उत्पन्न करता है, जिससे सामान्य स्तर के लोग प्रभावित होने लगें। इसलिए अच्छे वातावरण में रहना और बुरे वातावरण से बचना भी उसी प्रकार आवश्यक है, जैसे स्वच्छ हवा में रहने और दुर्गंध से बचने का प्रयत्न किया जाता है।
मनस्वी लोग अपनी आदर्शवादिता पर सुदृढ़ रहकर अनेकों का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं। कितनों को ही अनुकरण की प्रेरणा देते हैं। अपने औचित्य के कारण उस मार्ग पर चलने के लिए अनेकों को आकर्षित करते हैं। आवश्यक नहीं कि वह मार्ग सरल या परंपरागत ही हो, नवीन विचार भी अपने औचित्य के कारण प्रतिभाशाली लोगों द्वारा अपनाए जाने पर एक मार्ग बन जाते हैं।
सर्वसाधारण को तो परंपराएं ही सब कुछ प्रतीत होती हैं; पर विचारवान लोग औचित्यवान को देखते-परखते हैं, उसे ही चुनते-अपनाते हैं; पर असली बहुमूल्य मोतियों का कोई पारखी खरीददार न हो, ऐसी बात भी नहीं है। बुद्ध और गांधी का मार्ग सर्वथा नया था, पर उनके प्रामाणिक व्यक्तित्व और औचित्य भरे प्रतिपादन का परिणाम था कि असंख्य व्यक्ति उनके अनुयायी बने और एक नवीन वातावरण बना देने में सफल हुए; पर ऐसा होता तभी है जब प्रतिभावान अग्रगामी बनकर किसी उपयुक्त मार्ग को अपनाएं और अपनी बात को तर्क, तथ्य, प्रमाण, उदाहरण समेत समझाएं, स्वयं उस मार्ग पर सुदृढ़ रहकर अन्यान्यों में मनोबल उत्पन्न करें।
प्रथा-परंपराओं में से अधिकांश ऐसी हैं, जो आज की स्थिति के अनुरूप नहीं रहीं, भले ही वे किसी जमाने में अपने समय के अनुरूप भूमिका निभाती रही हों। समय गतिशील है, वह आगे बढ़ता है, पीछे नहीं लौटता। किसी को भी यह नहीं कहना चाहिए कि हमें परिस्थितियों से, व्यक्तियों से विवश होकर यह करना पड़ा। वातावरण का प्रभाव अवश्य पड़ता है, पर वह इतना प्रबल नहीं कि साहसी को बाधित कर सके, आदर्शों को तोडऩे-मोडऩे में समर्थ हो सके। अंतत: यह निष्कर्ष अपनी यथार्थता सिद्ध करता है कि मनुष्य अपने भाग्य और भविष्य का निर्माता स्वयं है।

Updated : 2 Aug 2013 12:00 AM GMT
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