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ज्योतिर्गमय

लालच से संकीर्तन करने पर फल नहीं मिलता

वृक्ष अपनी शाखा व फल तोडऩे पर, काट देने पर, खाल उतार देने पर अथवा जला देने पर भी ऐसा करने वालों के प्रति रोष प्रकट नहीं करता, सब कुछ सहन कर लेता है अर्थात् उसके फलों को तोडऩे वाला अथवा उसे काटने वाला मनुष्य भी यदि धूप अथवा वर्षा के समय आश्रय लेने के लिए उसी वृक्ष के नीचे आता है तो वह वृक्ष धूप एवं वर्षा को सहन कर, अपने को काटने वाले अथवा तंग करने वाले को भी छाया, विश्राम, आश्रय देकर धूप और वर्षा से उसकी रक्षा करता है। वृक्ष यह कभी नहीं कहता कि तुमने मुझे काटा है या दुख दिया है इसलिए मैं तुम्हें आश्रय नहीं दूंगा।
वृक्ष के समान सहनशील होकर हरि कीर्तन करने से अति शीघ्र भगवत प्रेम की प्राप्ति हो सकती है। अगर कोई आपको कष्ट दे तो उस से लड़ाई-झगड़ा या बदले की भावना मन में मत लाओ क्योंकि ऐसा करने से आपका भजन नष्ट हो जाएगा। ध्यान भजन की तरफ से हट कर दुनियादारी के सम्मान-तिरस्कार, निन्दा स्तुति की ओर हो जाएगा।
यदि हरि कीर्तन करने की इच्छा है तो दूसरों को मान दो, उनका सम्मान करो। अगर ऐसा नहीं करोगे तो वे आपके भजन में बाधा देंगे। अगर आप किसी को मान दें तो स्वयं के लिए भी ऐसे मान की इच्छा मत करें क्योंकि ऐसी चाहत से आवेश हो जाएगा और मान न मिलने पर तुम्हें दुख होगा और मन भटकने लगेगा।
जितना संभव हो प्रयत्न करें कि भजन-साधन में कोई खलल न पडऩे पाए। अपने मन को भगवान में लगा सको ऐसी चेष्टा करनी चाहिए। हर समय अपने मन में हरि कीर्तन करो। भगवान का नाम, रूप, गुण, लीला, महिमा उच्चारण को हर समय करो। अपने मतलब के लिए कीर्तन करने से जैसे संतान प्राप्ति के लिए, नौकरी पाने के लिए, धन की चाह रखने से आदि इच्छा करने से संकीर्तन का वास्तविक फल नहीं मिलेगा।
वह व्यापार हो जाएगा। संकीर्तन करो भगवान के श्री धाम में निकुंज सेवा प्राप्त करने के लिए। कनक, कामिनी और प्रतिष्ठा के लिए कभी कीर्तन मत करो। ऐसा करने से यह विषय बन जाएगा, कर्म हो जाएगा, भक्ति नहीं होगी। जिस क्रिया का फल भगवान की जेब में जाता है उसका नाम है भक्ति तथा जिस क्रिया का फल अपनी जेब में जाता है उसका नाम है कर्म।

Updated : 14 Aug 2013 12:00 AM GMT
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