ज्योतिर्गमय
सेवा ही है प्रमुख ध्येय
सेवा के लिए प्रतिबद्धता ही संसार में प्रमुख ध्येय है. तुम्हारे जीवन में भय या उलझन प्रतिबद्धता के अभाव के कारण है।
यदि जीवन में अस्त-व्यस्तता है तो संकल्प के अभाव के कारण। केवल यह विचार कि मैं संसार में सेवा के लिए ही हूं, मैं को विलीन करता है और जब मैं मिट जाता है, परेशानियां खत्म हो जाती हैं। सेवा वह नहीं, जिसे तुम सुविधा या सुख के लिए करते हो। जीवन का परम उद्देश्य है सेवारत होना। संकल्परहित मन दु:खी रहता है। संकल्प से जुड़ा मन कठिनाइयां अनुभव कर सकता है परंतु अपने श्रम का फल पाता है। जब तुम सेवा को जीवन का एकमात्र उद्देश्य बना लेते हो, तो यह भय को दूर करता है, मन को केन्द्रित करता है और तुम्हें लक्ष्य देता है।
यदि तुम केवल देने और सेवा के लिए आए हो, तो पाने के लिए कुछ है ही नहीं। सफलता श्रेष्ठता की कमी को इंगित करती है. सफलता यह दर्शाती है कि असफल होने की सम्भावनाएं भी हैं। जो सर्वश्रेष्ठ है वहां, असफलता के हारने का प्रश्न ही नहीं. जब तुम अपनी अनन्तता को समझते हो, तब कोई भी कार्य प्राप्ति या उपलब्धि नहीं। यदि तुम स्वयं को बहुत सफल समझते हो, इसका अर्थ है, तुम अपना मूल्यांकन कम कर रहे हो. तुम्हारी सभी प्राप्तियां तुमसे छोटी हैं। अपनी प्राप्तियों पर अभिमान करना स्वयं को छोटा करना है।
दूसरों की सेवा करते समय महसूस हो सकता है कि तुमने पर्याप्त नहीं किया, पर यह कभी नहीं महसूस होगा कि तुम असफल रहे। वही सच्ची सेवा है जब तुम महसूस करो कि तुमने पर्याप्त नहीं किया। कार्य करना तुमको इतना नहीं थकाता जितना कर्ता-भाव। तुम्हारी सभी प्रतिभाएं दूसरों के लिए हैं। यदि तुम सुरीला गाते हो, वह दूसरों के लिए है, यदि तुम स्वादिष्ट भोजन बनाते हो, तो दूसरों के लिए, अच्छी पुस्तक लिखते हो तो वह भी दूसरों के पढऩे के लिए।
यदि तुम अच्छे बढ़ई हो, तो यह इसलिए कि दूसरों के इस्तेमाल के लिए अच्छी चीजें बना सको। यदि तुम एक निपुण सर्जन हो, तो दूसरों को स्वस्थ्य करने के लिए। यदि तुम शिक्षक हो- वह भी दूसरों के लिए। तुम्हारे सभी कार्य, सभी निपुणताएं, दूसरों के लिए हैं।