ज्योतिर्गमय
कुछ भूलना भी सीखिए
जब मन में पुरानी दु:खद स्मृतियां सजग हों तो उन्हें भुला देने में ही श्रेष्ठता है। अप्रिय बातों को भुलाना आवश्यक है। भुलाना उतना ही जरूरी है, जितना अच्छी बात का स्मरण करना। जब खेत में घास-फूस उग आती है तो आप उसे उखाड़ फेंकते हैं। घृणित, क्रोधी, ईष्यालु, व्यथाजनक स्मृतियां उन्हीं कंटकों की तरह हैं, जो अंत:करण रूपी उद्यान की पवित्रता को नष्ट करती है। उत्पादक शक्ति का क्षय कर देती है। हम घृणित चिंताजनक अनुभूतियों को पुन:-पुन: यादकर अपने चहुंओर एक मानसिक नरक निर्मित कर उसी में दु:खी-पीडि़त होते हैं।
बुद्धिमानी इसी में है कि इन दु:खद प्रसंगों की ओर से मन हटा लिया जाए। जब हम उस ओर से मनोवृत्ति हटा लेंगे तो निश्चित ही हमारा इस नरक से साथ छूट जाएगा। विस्मृति का प्रभाव बड़ा मंगलदायक है। यों ही हम पीड़ा, दु:ख और वेदना की स्मृतियों या कल्पित भयों से अपना संबंध तोड़ते हैं, त्यों ही हम अंधकार से प्रकाश की ओर चलना प्रारंभ कर देते हैं। जब तक मनुष्य का मन व्यथा, पीड़ा, रोग, कष्ट, भय आदि से परिपूर्ण रहता है, तब तक उसका पौरुष प्रकट नहीं होता। उसकी दैवी कल्याणकारी शक्ति पंगु बनी रहती है। सबसे सरल एक उपाय है- जब-जब आपके मन में अनिष्ट भाव प्रकट हों, तब-तब उनको हटाना और भुलाना ही बुद्धिमानी का कार्य है। दुर्बलता, दीन-हीनता, भय और कष्ट को भुलाना कठिन है, परंतु ईश्वर का स्मरण सरल है। यदि हम कल्पित बंधनों को तोड़ डालें, तो ईश्वर सहायता देगा। उसके प्रति मन फेरते ही वह अद्भुत एवं अदृश्य रीति से सहायता करता है। हमें इसका कुछ ज्ञान भी नहीं होने पाता।
अमेरिका के एक प्रमुख डॉक्टर ने अपना एक सुझाव दिया है कि दु:ख और चिंता दूर करने के लिए भूल जाओ बढ़कर कोई दवा नहीं है। यदि तुम शरीर से, मन से और आचरण से स्वस्थ होना चाहते हो तो अस्वस्थता की सारी बातें भूल जाओ। नित्यप्रति के जीवन में छोटी-छोटी चिंताओं को लेकर झींकते मत रहो। उन्हें भूल जाओ। उन्हें पोसो मत। अपने अव्यक्त या अंतस्तल में पालकर मत रखो। उन्हें अंदर से निकाल फेंको और भूल जाओ। उन्हें स्मृति से मिटा दो। माना कि किसी अपने ने ही तुम्हें चोट पहुंचाई। तुम्हारा दिल दु:खाया है। संभव है जान-बूझकर ही उसने ऐसा नहीं किया है, और मान लो कि जान-बूझकर ही उसने ऐसा किया है, तो क्या तुम उसे लेकर मानसिक उधेड़-बुन में लगे रहोगे? इस चिंतित मन की अवस्था से क्या तुम्हारे मन का बोझ हलका होगा? अरे भाई, उन कष्टदायक अप्रिय प्रसंगों को भुला दो। उधर ध्यान न देकर अच्छे शुभ कार्यों में मन को केन्द्रीभूत कर दो। पुरानी कटु स्मृतियों को लेकर चिंताओं का जाल मत बुनने लगो। अपनी पीड़ाओं, दु:ख तकलीफों को भूलो। कौन ऐसा है, जिसे द:ख तकलीफें नहीं हैं। भूल जाओ, उधर से चित्त हटा लो, चिंता से आंखें फेरकर आशा की ओर लगाओ, कटुता से मन मोड़ लो। दूसरों के प्रति तुम्हारे मन में घृणा, द्वेष, ईष्या, दुर्भाव आदि के जो घाव हैं, उनमें भीतर मवाद भर रहा है और यह तुम्हारे ही शरीर, मन, प्राण में भयंकर मानसिक विष उत्पन्न कर रहा है। क्योंकि इस जहर से आत्म-हत्या करते हो? जीवन का आनंद क्यों नहीं लेते? फिर क्यों न इन तमाम बातों को अपने दिल से निकाल फेंको, हृदय से बहा डालो। तुम देखोगे कि जीवन के उज्जवल पक्षों पर स्थिर रहने से तुम्हारे भीतर ऐसी पवित्रता, ऐसी सफाई आएगी कि तुम्हारा शरीर और मन पूर्णत: स्वस्थ और निर्मल हो जाएगा।
इन वेदनाओं के विषय में पुन:-पुन: सोचकर क्यों अपने हाथों अपनी हत्या कर रहे हों? शायद तुम इन बातों को नहीं जानते। इसलिए चिंताओं को भूल जाओ, कटु अनुभूतियों को विस्मृत कर दो।
बड़े-बड़े संकट, विपत्ति, दु:ख के समय क्या करें? यदि हमारे ऊपर दु:खों का पर्वत टूटा हो, विपत्ति में बिजली गिर पड़ी हो, किसी ने हमारे सत्यानाश की युक्तियां सोची हों और कोई हमारा परम प्रिय व्यक्ति हमें तड़पता हुआ छोड़कर मृत्यु के मुख में समा गया हो, ऐसे अवसरों पर जब हमारा घाव गहरा और मर्मांतक है, हम क्या करें? क्या उन्हें भी भूल जाएं, विस्मृत कर डालें? हां, हां उन्हें भी भूल जाओ। धीरे-धीरे ही सही, किंतु विस्मृत कर दो, उन्हें भी। इसी में तुम्हारी भलाई है। भविष्य में इससे तुम अधिक से अधिक सुख पाओगे, शांति पाओगे। सच मानो कि दु:खों का भार उतार डालना कतई मुश्किल नहीं है। बड़ा ही आसान है। शुरू-शुरू में आदत डालने में कुछ समय लगेगा, संभव है, कुछ कठिनाई भी हो, लेकिन आदत पड़ जाने पर बात की बात में तुम बड़ी से बड़ी चिंता को चुटकियों पर उड़ा दोगे और इस प्रकार भूल जाने या भुला देने में तुम इतने अभ्यस्त हो जाओगे कि जीवन को दु:खमय और विषाक्त कर देने वाली तमाम बातें तुम्हारे सामने आते ही काफूर हो जाएंगी।
यदि शरीर का स्वास्थ्य और मन की शांति अभीष्ट है तो भूलना सीखो। चिंता से मुक्ति पाने का सर्वोत्तम उपाय दुखों को भूलना ही है।