Home > Archived > ज्योतिर्गमय

ज्योतिर्गमय

सच्ची साधना की प्रेरणा

साधक के छह लक्षण होते हैं- पहला है यह मान लेना कि तुम बहुत कम जानते हो। कई व्यक्ति, न जानते हुए भी सोचते हैं कि वे बहुत कुछ जानते हैं। वे अपने सीमित ज्ञान में उलझे रहते हैं और कभी नहीं सीख पाते। इसीलिए साधक सबसे पहले यह स्वीकार करता है कि वह बहुत कम जानता है। दूसरा है सीखने की चाह।
कई व्यक्ति यह तो समझते हैं कि वे ज्यादा कुछ नहीं जानते पर वे सीखने और जानने को भी तैयार नहीं। तीसरा है अनिर्णयात्मक भाव और खुला-मन। कुछ व्यक्ति सीखना तो चाहते हैं पर उनके संकुचित और निर्णयात्मक विचार उन्हें सीखने से रोकते हैं। चौथा है अपने पथ के प्रति एकाग्र निष्ठा। कुछ व्यक्ति खुले मन के तो होते हैं पर उनमें निष्ठा और एकाग्रता की कमी होती है।
वे इधर-उधर भटकते रहते है और आगे नहीं बढ़ पाते। पांचवा है सत्य और सेवा को हमेशा सुख के पहले रखना। कभी-कभी एकाग्र और निष्ठावान व्यक्ति भी क्षणिक सुखों के पीछे भागने में पथ से भटक जाते हैं। और आखिरकार, धैर्य और प्रयत्नशीलता. कुछ व्यक्ति निष्ठावान और एकाग्रचित होते हैं और क्षणिक सुखों के पीछे भी नहीं भागते, परन्तु यदि उनमें धैर्य और प्रयत्नशीलता का अभाव हो, तो वे विचलित और निरुत्साहित हो जाते हैं।
जो मन सुख खोजता है, वह केन्द्रित नहीं हो सकता। या तो तुम सुख खोजते हो या मेरे पास आते हो। जब तुम केन्द्रित होते हो, सारे सुख अपने आप ही तुम्हारे पास आ जाते हैं, पर तब वे सुख नहीं रह जाते। उनका आकर्षण नहीं रह जाता। यदि तुम्हें अपने दुख में रस आता है, तब भी तुम केन्द्रित नहीं हो सकते और तुम पथ से बहुत दूर हो जाते हो।
जो मन सुख खोजता है या दुख में रस लेता है, वह परम सुख को कभी प्राप्त नहीं कर सकता। यदि तुम सुख के पीछे भागते हो तो सत्संग को भूल जाओ। अपना समय क्यों व्यर्थ गंवा रहे हो? ईश्वर को अपना श्रेष्ठ समय दो, इसका फल भी मिलेगा। यदि तुम्हारी प्रार्थनाएं नहीं सुनी जा रही हैं, तो कारण है कि तुमने अपना मूल्यवान समय प्रभु को नहीं दिया। अपने जीवन में सत्संग और ध्यान को महत्वपूर्ण स्थान दो।

Updated : 23 July 2013 12:00 AM GMT
Next Story
Top