ज्योतिर्गमय
ईश्वर से मांगना बुरा नहीं
भले ही निष्काम भक्ति सर्वोच्च होती है, लेकिन सकाम भक्ति को भी महत्व देना होगा। क्योंकि लोगों के आगे हाथ फैलाने से अच्छा है कि परमात्मा के आगे हाथ फैलाया जाए..। सकाम भक्ति ही निष्काम भक्ति की ओर ले जाती है। आचार्य विनोबा भावे का चिंतन..
श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने भक्त के तीन प्रकार बताए हैं - सकाम भक्ति करने वाला, निष्काम परंतु एकांगी भक्ति करने वाला और ज्ञानी अर्थात संपूर्ण भक्ति करने वाला। निष्काम परंतु एकांगी भक्ति करने वालों के भी तीन प्रकार हैं - आर्त, जिज्ञासु और अर्थार्थी। भक्ति वृक्ष की ये शाखा-प्रशाखाएं हैं।
सकाम भक्ति करने वाले का क्या अर्थ है? कुछ इच्छा रखकर भगवान के पास जाने वाला। मैं यह कहकर उसकी निंदा नहीं करूंगा कि यह भक्ति निकृष्ट प्रकार की है। बहुत से लोग सार्वजनिक सेवा के क्षेत्र में इसीलिए जाते हैं, ताकि उन्हें मान-सम्मान मिले। इसमें हर्ज क्या है? आप उन्हें खूब मान दीजिए। मान देने से कुछ बिगड़ेगा नहीं। ऐसा मान मिलते रहने से आगे सार्वजनिक सेवा में वे सुस्थिर हो जाएंगे। फिर उसी काम में उन्हें आनंद आने लगेगा।
मान पाने की इच्छा का आखिर अर्थ क्या है? यही कि उस सम्मान से हमें विश्वास हो जाता है कि जो काम हम करते हैं, वह उत्तम है। सेवा अच्छी है या बुरी, यह जानने के लिए जिसके पास कोई आंतरिक साधन नहीं है, वह इस साधन का सहारा लेता है। जब मां बच्चे को शाबाशी देती है, तो वह चाहता है कि मां का और भी काम करूं। यही बात सकाम भक्त की है। सकाम भक्त सीधा परमेश्वर के पास जाकर कहता है - दो। परमेश्वर से मांगना कोई मामूली बात नहीं। असाधारण है।
एक कथा है। ज्ञानदेव ने नामदेव से पूछा, तीर्थयात्रा के लिए चलोगे? तो नामदेव ने कहा, यात्रा किसलिए? ज्ञानदेव ने जवाब दिया, साधु-संतों का समागम होगा। नामदेव ने कहा, भगवान से पूछकर आता हूं। नामदेव मंदिर में जाकर भगवान के सामने खड़े हो गए। उनकी आंखों से आंसू बहने लगे। रोते-रोते उन्होंने पूछा, प्रभु, क्या मैं जाऊं? ज्ञानदेव पास ही थे..।
इस नामदेव को क्या आप पागल कहेंगे? ऐसे लोग बहुत हैं, जो पत्नी के चले जाने पर रोते हैं। परंतु परमेश्वर के पास जाकर रोने वाला भक्त सकाम भले ही हो, पर असाधारण है। अब यह उसका अज्ञान समझना चाहिए कि जो वस्तु सचमुच मांगने योग्य है, उसे वह नहीं मांगता। परंतु इसलिए उसकी सकाम भक्ति त्याज्य नहीं मानी जा सकती।
स्त्रियां अनेक प्रकार के व्रत करती हैं। काकड़ा आरती (सुबह की जाने वाली विशिष्ट आरती) करती हैं। तुलसी की परिक्रमा करती हैं। किसलिए? ताकि मरने के बाद परमेश्वर का अनुग्रह प्राप्त हो। यह उनके मन की भोली धारणा हो सकती है, परंतु उनके लिए वे व्रत, जप, उपवास आदि अनुष्ठान करती हैं। भक्तिभाव रखने वाली स्त्रियों का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। गीता में भगवान कहते हैं - मेरा भक्त सकाम होगा, तो भी उसकी भक्ति दृढ़ करूंगा। उसके मन में उलझन नहीं होने दूंगा। यदि वह मुझसे सच्चे हृदय से प्रार्थना करेगा कि मेरा रोग दूर कर दो, तो मैं उसके आरोग्य की भावना को पुष्ट करूंगा। किसी भी निमित्त (कारण) से वह मेरे पास आएगा, तो मैं उसकी पीठ पर हाथ फेरकर उसकी कद्र ही करूंगा।
ध्रुव को देखो। पिता की गोद में नहीं बैठ पाया, तो उसकी मां ने कहा, ईश्वर से स्थान मांग। वह उपासना में जुट गया। भगवान ने उसे अचल स्थान दे दिया। मन निष्काम न हो, तो भी क्या? महत्व की बात तो यह है कि मनुष्य मांगता किससे है? दुनिया के सामने हाथ न पसारकर ईश्वर से मांगने की वृत्ति बड़े महत्व की है।
निमित्त कुछ भी हो, एक बार आप भक्ति-मंदिर में जाएं तो सही। पहले यदि कामना लेकर भी जाएंगे, तो भी आगे चलकर निष्काम ही हो जाएंगे। भक्ति मंदिर में एक बार प्रवेश कीजिए, फिर वहां की सामथ्र्य अपने आप मालूम हो जाएगी।
स्वर्ग जाते हुए धर्मराज के साथ अंत में एक कुत्ता ही रह गया। भीम, अर्जुन सब रास्ते में गिर पड़े। स्वर्ग-द्वार के पास धर्मराज से कहा गया, तुम आ सकते हो, परंतु कुत्ते की मनाही है। धर्मराज ने कहा, अगर मेरा कुत्ता नहीं आ सकता तो मैं भी नहीं आऊंगा। अनन्य सेवा करने वाला कुत्ता भी मैं-मैं करने वाले इंसानों से तो श्रेष्ठ ही है। वह कुत्ता भीम-अर्जुन से भी श्रेष्ठ साबित हुआ। मंदिर में कछुए और नंदी की मूर्तियां रहती हैं। उस नंदी बैल को सब नमस्कार करते हैं, क्योंकि वह साधारण बैल नहीं है। वह भगवान के सामने रहता है। बैल होने पर भी यह नहीं भूल सकते कि वह परमेश्वर का है। भगवान का स्मरण करने वाला हर जीव विश्ववंद्य हो जाता है।
एक बार मैं रेल से जा रहा था। यमुना के पुल पर गाड़ी आई। पास बैठे आदमी ने बड़े पुलकित हृदय से नदी में एक धेला डाल दिया। पास में एक आलोचक बैठे थे। कहने लगे, पहले ही देश कंगाल है और ये लोग व्यर्थ पैसा फेंकते हैं। मैंने कहा, यदि दूसरे सत्कार्य के लिए उसने पैसे दिए होते तो वह दान और भी अच्छा होता, किंतु उस मनुष्य ने तो इस भावना से प्रेरित होकर यह त्याग किया है कि यह नदी के रूप में ईश्वर की करुणा ही बह रही है। इस भावना के लिए आपके अर्थशास्त्र में कोई स्थान है क्या? देश की एक नदी को देखकर उसका अंत:करण द्रवित हो उठा। देश की महान नदी को देखकर यदि यह भावना मन में जागती है कि अपनी सारी संपत्ति अर्पण कर दूं, तो यह कितनी बड़ी देश-भक्ति है। आप कहेंगे कि नदी का और परमेश्वर का क्या संबंध है? नदी है, ऑक्सीजन और हाइड्रोजन। सूर्य है, गैस की बत्ती का एक बड़ा सा नमूना। उसे नमस्कार क्यों करें? सूर्य और नदी में यदि परमेश्वर का अनुभव न होगा, तो फिर कहां होगा? अंग्रेज कवि व?र्ड्सवर्थ बड़े दुख से कहता है - पहले जब मैं इंद्रधनुष देखता था, तो नाच उठता था। हृदय हिलोरें मारने लगता था, पर आज मैं क्यों नहीं नाच उठता? पहले की जीवन-माधुरी खोकर कहीं मैं पत्थर तो नहीं बन गया।
सारांश यह है कि सकाम भक्ति अथवा मनुष्य की भावना का भी बड़ा महत्व है। इससे महान साम?र्थ्य पैदा होती है। भक्ति एक अपूर्व साधना है। सकाम भक्ति ही बाद में क्रमश: निष्काम भक्ति और फिर पूर्ण भक्ति की ओर ले जाएगी।