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ज्योतिर्गमय

आकृति, प्रकृति, स्वीकृति, प्रतिकृति

सब अलग-अलग शब्द हैं मतलब भी अलग-अलग हैं। आकृति कहते हैं साधारणत: चेहरे को। किसी की आकृति इतनी मनमोहक होती है कि लोग ठिठक कर खड़े हो जाएं। ऐसी आकृति महात्मा बुध्द की थी। इतना तेज इतनी आभा, इतना प्रभाव कि वाकई लोग ठिठक कर खड़े हो जाते थे, बस उन्हें देखते रहते हैं। जब अन्दर सब कुछ ठीक होगा तो बाहर उसका प्रभाव दिखेगा ही। कहते हैं कि आदमी के शरीर से भी गंध आती है। वह निर्भर करता है आपके खानपान, चरित्र, मानसिकता पर। यदि आप अन्दर से पाक-साफ हैं दिल में किसी के लिए कोई गलत भावना नहीं है, चरित्र ऊंचाई पर है तो आकृति प्रभावशाली होगी ही होगी। प्रकृति कहते हैं स्वभाव को। उसका भी विचारों से सीधा संबंध है। यदि विचार सकारात्मक है रचनात्मक है तो प्रकृति भी प्रभाव डालेगी। स्वभाव में हर अच्छी चीजें उतरेगी ही। यदि आप अन्दर से खुश हैं तो दूसरों से मुस्कुराकर हंसकर बातें करेंगे। नहीं तो बुझे-बुझे से रहेंगे। बातों में कोई रस न होगा। रसहीन बातों का बोलना न बोलना बराबर है। यदि आपकी बातों में किसी को मजा न आया तो शुष्क बातों का फायदा ही क्या। आप बोले जा रहे हैं। लोग इस कान से सुन रहे हैं उस कान से बाहर निकाल रहे हैं। यह दोनों का समय और शक्ति बरबाद करने वाली बात है। जैसे कई लोग बेमतलब बेमजा बातें करते हैं चाहे कोई सुने न सुने, किसी को मजा आए न आए। कुछ लोग बातें कर रहे थे तो एक इंसान ने कुछ बातें की तो लोगों ने कहा कि भाई मजा नहीं आया तो उसने कहा कि मजा आया हो या न आया हो। मैंने तो अपनी बात कह दी सो कह दी। कोई पहले तो स्वीकृति लेता नहीं कि भाई मैं यह बात कहने जा रहा हूं। इसे भी लोगों के मनोरंजन का ढंग कह सकते हैं। प्रतिकृति याने हूबहू वही आवाज, वही हावभाव, सबका मनोरंजन करते हैं। आकृति, चेहरा, रूप, रंग, कद, डीलडौल सब माता-पिता से मिलता है। फिर अपनी मेहनत से बरकरार रखा जाता है या उसमें इजाफा भी करते हैं लोग। चुस्त-दुरूस्त बनते हैं व्यायाम, कुश्ती, जिम आदि में भाग लेकर। आजकल इसका बहुत क्रेज है। अच्छी बात है। पर बाहर के शरीर के साथ-साथ अंदर का मन भी खूबसूरत होना चाहिए। कहते हैं चेहरे पर लकीरें, झुर्रियां आपके विचारों के द्वारा। अच्छा-अच्छा सोचिए, शुभ-शुभ बोलिए। लोगों पर इसका प्रभाव पड़ता है। जीवन अन्दर से ही बाहर आता है इसलिए अंदर को सुधारें, सुघड़ बनाएं तो बाहर की आकृति अच्छी दिखेगी। अक्सर महिलाओं के चेहरों पर झुर्रियां कम पड़ती हैं क्योंकि वे हंसती रहती हैं खुश रहती हैं, चिंता नहीं करती। सहती भी हैं। ईश्वर ने उन्हें शारीरिक रूप से भले ही दूसरे नम्बर पर रखा हो पर मन से वे ज्यादा मजबूत होती हैं। ईश्वर ने जो आपको बनाया है आप वहीं रहेंगे पर मानसिकता को सुधारना हमारे हाथ में है। उसके लिए चिन्तन करिए चिंता नहीं खुश रहिए। परिस्थितियों और समस्याओं की चिंता भगवान को करने दें। वह विश्व नियन्ता है। सब ठीक कर देगा। बस यही संदेश है।

Updated : 24 Jun 2013 12:00 AM GMT
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