ज्योतिर्गमय
स्वयं बनना है स्वतंत्र
आपके माता-पिता आपको कुछ बनाना चाहते हैं। खुद आप किसी के जैसा बनना चाहते हैं। क्या यह पराधीनता नहीं? प्रसिद्ध विचारक जे. कृष्णमूर्ति की राय में, जब हम स्व बनने की तरफ चलते हैं, तभी वास्तविक स्वतंत्रता हासिल कर पाते हैं..
स्वतंत्र होने का क्या अर्थ है? क्या स्वतंत्रता का अर्थ अपनी इच्छानुसार कार्य करना, अपनी मर्जी के अनुसार कहीं जाना या इच्छानुसार सोचना है? यह सब तो आप किसी न किसी तरह कर ही लेते हैं। केवल दूसरे पर आश्रित न रहने का अर्थ ही स्वतंत्रता नहीं है। विश्व के अनेक व्यक्ति दूसरों पर आश्रित नहीं हैं, लेकिन स्वतंत्र बहुत ही कम हैं।
स्वतंत्रता के लिए बहुत ऊंची मेधा की आवश्यकता होती है। पर यह आसानी से नहीं मिल जाती। इसका आगमन तो तब होता है, जब आप संपूर्ण वातावरण को, अपने चिरसंचित सामाजिक, धार्मिक, पैतृक और परंपरागत संस्कारों को पूरी तरह समझ लेते हैं। लेकिन इन समस्त पूर्वसंचित संस्कारों से, जो आपको माता-पिता, सरकार, समाज, संस्कृति, विश्वास, अंधविश्वास व परंपरा से प्राप्त हुए हैं, उनसे आप बंधे हैं और आप भी बिना सोचे-समझे उन पर अमल किए जा रहे हैं। इन पूर्वसंचित संस्कारों को समझने और इनसे मुक्त होने के लिए एक गहरी अंतर्दृष्टि की आवश्यकता होती है। पर अक्सर आप अंदर से भयभीत रहते हैं कि कहीं आपकी प्रतिष्ठा न समाप्त हो जाए, कहीं आप परंपरा के प्रतिकूल न चले जाएं, कहीं आपके हाथों कोई गलत बात न हो जाए। लेकिन स्वतंत्रता तो एक ऐसी मानसिक अवस्था है, जहां न डर है, न जबरदस्ती और न सुरक्षित होने की भावना ही है।
क्या हममें से अधिकतर सुरक्षा नहीं चाहते? महान नहीं कहलाना चाहते? हम सभी प्रसिद्ध होना चाहते हैं। लेकिन जैसे ही हम कुछ बनना चाहते हैं, हम स्वतंत्र नहीं रह जाते। कृपया इसे समझें, क्योंकि स्वतंत्रता को समझने के लिए यह एक सूत्र है।
चाहे आप राजनीति, शक्ति, प्रतिष्ठान या अधिकारों की दुनिया में हों या उस तथाकथित आध्यात्मिक दुनिया में, जहां आप गुणी, भले और सज्जन बनने की अभिलाषा करते हैं, पर ज्यों ही आप कुछ बनने का प्रयत्न करते हैं, त्यों ही आप स्वतंत्र नहीं रह जाते। स्वतंत्र वही है, जो इन सारी बातों की व्यर्थता को महसूस करता है और कुछ और बनने की इच्छा से प्रभावित नहीं होता।
शिक्षा का कार्य है कि वह बचपन से ही हर क्षण आपको वही होने में सहयोग दे, जो कि आप हैं। उसका कार्य किसी का अनुकरण करने की सीख देना नहीं। यह बहुत कठिन है कि आप जैसे हैं, वैसे ही बनें, फिर चाहे आप कुरूप हों या सुंदर। आप जो हैं, उसे समझें और हमेशा वही हों, जो कि आप स्वयं हैं। यह स्वयं बनना बहुत कठिन है।
स्वतंत्रता आप जो कुछ हैं, उससे भिन्न होने में नहीं है।
अपनी इच्छानुसार कार्य करना भी स्वतंत्रता नहीं है। इसमें भी स्वतंत्रता नहीं कि आप किसी परंपरा, गुरु या माता-पिता का अनुकरण करें। स्वतंत्रता का सही अर्थ है, अपनी सच्चाई को क्षण-प्रतिक्षण समझना।
आपका यह 'स्वयं' बहुत पेचीदा है। यह केवल वही नहीं है, जो विद्यालय जाता है, जो झगड़ता है, जो भयभीत है, बल्कि यह इससे कहीं ज्यादा रहस्यमय और अस्पष्ट है। यह केवल आपके उन विचारों से ही नहीं बना है, जो आप सोचा करते हैं। इसमें वे समस्त बातें भी शामिल हैं, जो आप दूसरों से सुनते हैं, पुस्तकों और समाचार-पत्रों को पढ़कर हासिल करते हैं।
यह बात आप तभी समझ सकते हैं, जब आप कुछ और नहीं बनना चाहते हैं। आप किसी की नकल नहीं करते हैं, किसी के अनुयायी नहीं बनना चाहते हैं। इसका अर्थ यह है कि आप 'कुछ बनने' के लिए प्रयत्न करने की परंपरा के खिलाफ विद्रोह करते हैं। दरअसल, यही वह वास्तविक क्रांति है, जो हमें उस अद्भुत स्वतंत्रता की ओर ले जाती है। इस स्वतंत्रता के लिए यह आवश्यक है कि आप अपने उन समस्त संस्कारों से मुक्त हो जाएं, जो आपको बांधते हैं, कुचलते हैं।