ज्योतिर्गमय
समाज निर्माण और प्रतिभाएं
अग्निकांड, भूकंप, दुर्भिक्ष, महामारी, दुर्घटना जैसे अवसरों पर उदार सेवा भावना की परीक्षा होती है।
जिम्मेदार भावनाशील इस अवसर पर चूकते नहीं। सेवा साधना में जुट पडऩे वाले सदा के लिए लोगों के मन पर अपनी प्रामाणिकता, महानता की गहरी छाप छोड़ते हैं, जो कालांतर में उन्हें अनेक माध्यमों से महत्वपूर्ण वरिष्ठता प्रदान कराती है। इतिहास साक्षी है कि आपत्तिकाल में राजपूत घरानों से एक-एक सदस्य सेना में भर्ती होता था।
विपन्न बेला में भी सिख धर्म के प्रभाव में आए हर परिवार ने अपने परिवार से एक युवक को सेना का सदस्य बनने के लिए प्रोत्साहित किया था। वर्तमान स्थिति तब की अपेक्षा कम विपन्न नहीं है। नवसृजन में संलग्न होने के लिए हर घर से एक प्रतिभा को आगे आना चाहिए और भारत की सतयुगी गरिमा जीवंत रखने का श्रेय लेना चाहिए।
सत्य प्रयोजनों के लिए प्रस्तुत आदर्शवादी साहस व्यक्तित्व को ऐसा प्रामाणिक, प्रखर व प्रतिभावान बनाता है, जिसके उपार्जन को दैवी संपदा के रूप में आंका जा सके और जिस पर आज की भौतिक संपदाओं, सुविधाओं को न्यौछावर किया जा सके। धनाढ्य और विद्वान कुछ लोगों पर ही अपनी धाक जमा पाते हैं, पर महामानव स्तर की प्रतिभाएं समस्त मानव जाति को कृत-कृत्य करती हैं। प्रतिभाओं का प्रयोग जब कभी औचित्य की दिशा में होता है, उन्हें हर प्रकार से सम्मानित-पुरस्कृत किया गया है। संसार उन्हें महामानव का सम्मान देता है तथा भगवान हनुमान, अर्जुन जैसे आत्मीय रूप में वरण करते हैं।
युग निर्माण बड़ा काम है। उसका संबंध किसी व्यक्ति, क्षेत्र अथवा देश से नहीं, वरन विश्वव्यापी मानव जाति के चिंतन, चरित्र और व्यवहार में आमूल चूल परिवर्तन से है। पतनोन्मुख प्रवृत्तियों को आंधी तूफान की दिशा में उछाल देना असाधारण दुस्साहस भरा प्रयत्न है। कैंसर के मरीज को रोग मुक्त करना और निरोग होने पर उसे पहलवान स्तर का समर्थ बनाना चमत्कारी कायाकल्प है।
ऐसे उदाहरण सम्राट अशोक के स्तर पर अपवाद स्वरूप ही दिखते हैं। पर जब यही प्रक्रिया सार्वभौम बनानी होती हो, तो कितनी दुरूह होगी, इसका अनुमान वही लगा सकते हैं, जिन्होंने असंभव को संभव करने का क्रम पूरा किया हो। युग की समस्याओं को सुलझाने के लिए अनौचित्य को निरस्त करने और सृजन का अभिनव उद्यान खड़ा करने के लिए ऐसे व्यक्तित्व चाहिए, जो परावलम्बन की हीनता से अंत:करण को भाव संवेदनाओं से ओतप्रोत कर सकें।