पूजा के दौरान इसलिए हाथ में बांधी जाती है मौली

हिंदू धर्म में पूजन कर्म के दौरान पंडित हाथ में लाल धागा जरूर बांधते हैं। इसे मौली कहा जाता है। इसके बिना पूजा-अर्चना संपन्न नहीं मानी जाती है। हिंदू धर्म में कई रीति-रिवाज तथा मान्यताएं हैं। इन रीति-रिवाजों तथा मान्यताओं का सिर्फ धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक पक्ष भी है, जो वर्तमान समय में भी एकदम सटीक बैठता है। प्रत्येक धार्मिक पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन में पंडित द्वारा हमारे हाथ में मौली (एक धार्मिक धागा) बांधी जाती है। शास्त्रों का ऐसा मत है कि मौली बांधने से त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है। ब्रह्मा की कृपा से कीर्ति, विष्णु से बल मिलता है और शिव दुर्गुणों का विनाश करते हैं। इसी प्रकार लक्ष्मी से धन, दुर्गा से शक्ति एवं सरस्वती की कृपा से बुद्धि प्राप्त होती है। मौली का शाब्दिक अर्थ है सबसे ऊपर, जिसका तात्पर्य सिर से भी है। शंकर भगवान के सिर पर चंद्रमा विराजमान है इसीलिए उन्हें चंद्रमौलि भी कहा जाता है। मौली बांधने की प्रथा तब से चली आ रही है जब दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए वामन भगवान ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था। शरीर विज्ञान की दृष्टि से अगर देखा जाए तो मौली बांधना उत्तम स्वास्थ्य भी प्रदान करती है। चूंकि मौली बांधने से त्रिदोष- वात, पित्त तथा कफ नियंत्रण में रहते हैं।