ज्योतिर्गमय
युग परिवर्तन की बेला
यह समय युग परिवर्तन जैसे महत्वपूर्ण कार्य का है। इसे आदर्शवादी सैनिकों के लिए परीक्षा की घड़ी कहा जाए, तो उसमें कुछ भी अत्युक्ति नहीं समझी जानी चाहिए। पुराना कचरा हटता है और उसके स्थान पर नवीनता के उत्साह भरे साधन जुटते हैं। यह महान परिवर्तन की महाक्रांति की बेला है। प्रबुद्धों को अनुभव करना चाहिए कि यह समय विशेष है, हजारों-लाखों वर्षों बाद कभी-कभार आता है।
गांधी के सत्याग्रही और बुद्ध के परिवार्जक बनने का श्रेय समय निकल जाने पर कोई भी नहीं पा सकता. समय की प्रतीक्षा तो की जा सकती है, पर समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। भगीरथ, दधीचि और हरिश्चन्द्र जैसा सौभाग्य अब उनसे भी अधिक त्याग करने पर नहीं पाया जा सकता. समय बदल रहा है। कुछ घंटे यदि प्रमाद में गंवा दिये जाएं, तो वह गया समय लौटकर भला फिर किस प्रकार आ सकेगा? युग परिवर्तन की बेला ऐतिहासिक, असाधारण अवधि है. इसमें जिनका जितना पुरुषार्थ होगा, वह उतना ही उच्च कोटि का शौर्य पदक पा सकेगा. समय निकल जाने पर हाथ मलने के अलावा कुछ शेष नहीं रहता।
इन दिनों मनुष्य का भाग्य और भविष्य नये सिरे से लिखा और गढ़ा जा रहा है. ऐसा विलक्षण समय हजारों लाखों वर्षो बाद आता है। इन्हें चूक जाने वाले सदा पछताते रहते हैं और जो उसका सदुपयोग कर लेते हैं, वे अपने आपको अजर-अमर बना लेते हैं। गोवर्धन एक ही बार उठाया गया था। समुद्र पर सेतु भी एक बार ही बना। कोई सोचता रहे कि ऐसे समय तो आते ही रहेंगे और जब भी मन करेगा, तभी उसका लाभ उठा लेंगे, तो ऐसा समझने वाले भूल कर रहे होंगे. इसका परिमार्जन फिर कभी कदाचित ही हो सके।
लोग पुरुषार्थ से तो अपने अनुकूल परिस्थितियां उत्पन्न करते ही रहते हैं, पर भगवान के उपायों का श्रेय मनुष्य को अनायास मिल जाए, ऐसा कदाचित ही कभी होता है। अर्जुन का रथ कृष्ण ने एक बार चलाया था। भगवान राम और लक्ष्मण को कंधों पर उठाने का श्रेय हनुमान को एक बार ही मिला था. ब्रह्मा ने सृष्टि एक ही बार रची थी। उसके बाद तो वह क्रम ज्यों-त्यों करके अपने ढंग से चलता ही आ रहा है।
समुद्र मंथन एक बार ही हुआ और उसमें से 14 रत्न एक बार ही निकले थे। अवांछनीयता के पलायन का, औचित्य की संस्थापना का ब्रह्ममुहूर्त, एक बार ही आया है. फिर कभी हम लोग इसी मनुष्य जन्म में ऐसा देख सकेंगे, इसकी आशा करना अवांछनीय ही होगा।