जनमानस
बाल विवाह पर रोक
आजादी के 66 वर्षों के बाद भी आज बाल विवाह हो रहे हैं, अक्षय तृतिया के अवसर पर प्रशासन व विभिन्न समाजों के द्वारा प्रतिवर्ष सामूहिक विवाह आयोजित किए जाते हैं, जो कि आज के समय की आवश्यकता भी है, किन्तु इन्हीं सामूहिक विवाह समारोह में ही बाल विवाह भी हो जाते है, जो चिन्ता का विषय है। शासन, प्रशासन अपनी और से पूरी मुस्तैदी के साथ इनको रोकने का प्रयास भी करता है, किन्तु सामाजिक जागृति के अभाव, आर्थिक कारणों से मजबूर होकर यह विवाह होना रुकता नहीं है, जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है आज केन्द्र, राज्य सरकार, प्रशासन व समाज अपने स्तर पर बाल विवाह को रोकने को कानून व जागरुकता के माध्यम से रोकने के लिए तत्पर है, किन्तु जागरुकता का अभाव आज भी सबसे बड़ी समस्या है, बाल विवाह के कारण होने वाली हानियां जितनी भयावह है वह सभी को मालूम है, एक प्रकार से लड़की का संपूर्ण विकास रुक जाता है, सामाजिक, शैक्षणिक आर्थिक, शारीरिक सभी दृष्टी से उसका जीवन नरक के समान हो जाता है। आज लड़कियां सभी दृष्टि से समाज में सभी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही है। बाल विवाह जैसी कुप्रथा उसके इस बढ़ते अधिकार में रुकावट पैदा न करें ।
संजय जोशी, ग्वालियर