ज्योतिर्गमय
जब जागो तभी सबेरा
कहते हैं वैसे हमारे यहां चौबीस घंटों को आठ पहर में बांटा गया है। हर पहर तीन घंटे का सुबह तीन से छह बजे को ब्रह्म-मुहूर्त कहा गया है। ऋषि, मुनि, साधु, योगी, पुराने बुजुर्ग ब्रह्म-मुहूर्त में सोकर उठ जाया करते थे शैया त्याग कर देते थे। वे सोते भी जल्दी थे रात्रि का दूसरा पहर चालू होते तक या होते-होते सो जाया करते थे। संध्या समय रात्रि का भोजन कर लेते थे। सब कुछ नियम से चलता था। अल्प भोजन, अल्प निद्रा, सादगी, सरलता, परिश्रम, भगवान की आराधना आदि-आदि। न ज्यादा की चाह थी न कोई लालच मोह बिलकुल अनासक्त जीवन। गृहस्थ होते हुए भी वैराग्य पूर्ण जीवन। कहा भी है कि आप परिवार में रहो पर परिवार आप में न रहे, आप संसार में रहो पर संसार आप में न रहे। नाव पानी में रहे पर नाव में पानी न रहे नहीं तो डूबना निश्चित है। क्या जीवन था आवश्यकताएं इतनी कम थीं। पैदल चलना या बहुत बाद साइकिल आई तो उसका इस्तेमाल करने लगे। आजकल लोग व्यायाम के लिए साइकिल चलाते हैं सड़क पर या घर में स्थिर साइकिल। एक इंसान कुत्ते को रस्सी से बांध लेते थे। खुद साइकिल चलाते थे। कुत्ता चूंकि रस्सी से बंधा था पीछे-पीछे भागता रहता था। दोनों का व्यायाम। टू इन वन व्यायाम। क्या-क्या तरीके ईजाद करते थे। पहले घुड़सवारी हुआ करती थी यह भी एक व्यायाम था। गाय बैल होते थे। उनकी सेवा होती थी व्यायाम का व्यायाम और दूध आदि की प्राप्ति। दूध भी स्वयं दोहते थे। महिलाएं भी करती थीं घर का सारा काम, कुएं, बावड़ी से पानी लाना काफी दूर से अब तो बटन दबाया पानी मिल गया यानि कम से कम परिश्रम इसीलिए अस्वस्थता। शहरों में तो जीवन कुछ अलग ढंग का हो ही गया है। काफी सुविधाजनक पर छोटे गरीब किसान मजदूर आज भी मेहनत करते हैं, स्वस्थ रहते हैं। कहा है पहला सुख निरोगी काया बाकी सुख बाद में पतिव्रता पत्नी, आज्ञाकारी संतान, ऑफिसर, कर्मचारी घर में काम करने वाले नौकर, ड्राइवर सभी सुखी करते हैं या दुख पहुंचाते हैं। जीवन कई आयामों में बंटा हुआ है सबका महत्व है और आप भी सबके लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं। महत्वपूर्ण होने के लिए कुछ करना पड़ता है कुछ खोना पड़ता है। त्याग, प्रेम सद्भावना, सहानुभूति, सब चाहिए थोड़ा-थोड़ा तो जीवन का शर्बत मीठा होता है। आप चखिए औरों को चखाइए। तो बस अब आप जाग जाइए यही मेरा संदेश है।